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________________ प्रस्तावना किसी भी देशके प्राचीन स्थापत्य और साहित्यसे ही उस देशकी संस्कृतिक मूल्य आँका जाता है । विद्या और कला देशका अनमोल धन है । शिल्पस्थापत्य मानव जीवनका अति उपयोगी और मर्मपूर्ण अंग है। __ भारतीय शिल्प स्थापत्य (वास्तुविद्या ) का प्रारम्भ काल कब से माना जाय अिस बारे में निर्णय करने में प्राचीन साहित्यके आधार लेने की आवश्यकता है । ऋग्वेद, ब्राह्मण ग्रंथों, रामायण, महाभारत, पुराण, जैन आगमों और बौद्ध ग्रंथों आदि साहित्य के संदर्भ सहायक हो सकते हैं। ऋग्वेदके सातवें मंडलके दो अध्यायोंमें घरको सुदृढ रतंभो के साथ वास्तुपति इंद्रकी स्तुति है । यहाँ इंद्रको देवोंके स्थपत्ति त्वष्ठा कहा गया है। विश्वकर्मा को समग्र विश्वके त्वष्टा माना गया है, उनके पुत्रको भी त्वष्टा कहकर उनके शिष्य विभुकी स्तुति की गई है। और ऋग्वेदमें वास्तुविद्याके ज्ञाता अगस्त्य और वसिषके नाम भी दिये गये हैं। त्वष्टा और विभुने इन्द्रको वन बना दिया था। पाषाणके बनाये हुए सौ नगरोंमें सप्रमाण भवनोंकी रचनाका उल्लेख मिलता है। जिससे हम यह अनुमान लगा सकते है कि स्थापत्य कलाका प्रारम्भ ऋग्वेदसे भी बहुत वर्षों से पहले हुआ होगा। अथर्ववेदके सूकतों में स्थापत्यकलाके बहुत शब्द पाये जाते हैं। सामवे के गृह्यसूत्रमें गृहारम्भकी धार्मिक क्रियाके तीन अध्याय है । आश्लायन गृह्यसूत्रमें भी वास्तु विद्याके पर तीन अध्याय हैं । भूमिको अतीव वंदनीय मानकर उसका पूजन और उसकी स्तुति दी गई है। इन सब बातोंको होते हुए भी ऋग्वेद या ब्राह्मण ग्रंथों में वास्तुविद्याके बारेमें स्वतन्त्र अध्याय नहीं मिलते हैं। मूर्तिपूजाका प्रारम्भ भी वैदिक ब्रह्मण युगमें हुआ था ।। संसारके प्रत्येक प्राणीको जन्मसे ही शीत उष्ण और वर्षाकी प्राकृतिक प्रतिकूलताओंके सामने सुरक्षाकी जरूरत महसूस हुई इसीसे ही वास्तुविद्याका प्रारम्भ स्थूल रूपसे आदिकाल में माना जा सकता है। पर्वतोंकी गुफा या पर्णकुटि बनाकर मानवीने वास किया । वास्तुदव्यमें प्रथम घास ओर वांसका उपयोग हुआ, बादमें काष्टका, बाद में ईटोंका उपयोग होने लगा। अंतमें पाषाणका उपयोग बाँधकामों में होने लगा । शुक्राचार्य कहते हैं कि विद्या अनंत है और कलाकी तो गिनती ही नहीं हो सकती । परन्तुं मुख्य विद्या बत्तीस और कलाओं चौसठ उनके द्वारा कही
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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