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ज्येष्ठ मानका महामंडोवर एक छज्जा उदय भूमि-उदयजघा युक्त मंडोवर समस्त भाग ७.
अथ सांधार चतुर्मुख प्रासाद सूक्षण
(भावार्थ) विश्वकर्मा कहते है... जिनायत की जगतीका कोष्ठ लम्बा चोडा करना । उस कोष्ठके वेदि २३ भाग और गहराई तीस भाग । उस कोठे में मूल प्रासाद-चेइयाण उन्नीस भाग और पच्चीस भाग लम्बा गहराई में विधि से रखना | तीन कोठे के अंतरे आठ ऐसे तीन भद्रे ...सोलह ...मध्यगर्म से दोनु और बत्तीस...भद्रके बगलमें भी...तीन तीन बाजुके अंतरमें प्रविष्ठ करना । आठ ...गहरा प्रविष्ठ...भद्रे भद्रे जीनालय करना । जिनायतमें बावन जिनायतन सर्वमें श्रेष्ठ हैं। ३४-३५-३६-३७-३८. दिग्पाल तांडवनाचं लास्यं
लोके वैतालश्च ॥३९॥ प्रकृते षु पुनर्निमिक्षु (१)
नृत्य कूर्याच्चतुर्मुखे । स्तर स्थाने विशेषण शाखे
स्तंभे निरंतरे ४ ॥४०॥ यावज्जीवानि सर्वाणि नृत्यकुर्वति
मे सदा। प्रासाद मानतुङ्गश्च द्विपंचाश
जिनालयः ॥४॥ छंद नागर , मादाय
___ सर्वछंदानिमाश्रितम्। येनपीठ विरंचितम्
मंडोवर विशेषतः ॥४२॥ चातुर्मुखे चदातव्या पुनर्दद्या चतुर्मुखे।
इति मातंग (मानतुङ्गप्रासाद)
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३१ प्रकन्ये न कृत्य चातुर्मुख, ३२ चातुर्दशै । पाठान्तर ३३ पदस्थाने, ३४ विस्तरे, ३५ दिपत्रिंश बाबन, ३६ जीतपिराज्यते ।