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अर्थ स्तंभ मान लक्षणाधिकार
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गवालुकायुक्त तोरण
महाप्रासादको मंडपके फिरते जांगी वेदीका या गुंबज वितान शेई पाटमें योग्य स्थानपर इंद्रादि दिग्पाल-लोकपाल नृत्य करते
करना । सूर्यादि नवग्रहों, बारह राशियों, सत्ताईश नक्षत्रों, आठ आय आठ व्यय, नवतारा, सात स्वर, छः राग छत्तीस रागिगी, बारहमेध, यक्ष, गंधर्व, विद्याधरों, नाग, किन्नरों वगैरह अनेक देवों देवी देवताओंके स्वरूपों मंडपके फिरते नृत्य करते करना । (मुख्य स्वरूपको) इलिका झूलके साथ गजसिंह और विरालिकाके साथ स्तंभिका के साथ करना । २३-२४-२५-२६. इतिश्री विश्वकर्माकृतायां क्षीरार्णवे नारद पृच्छायां स्तंभ मान लक्षणाध्याये
शताग्रे पंचदशमोऽध्याय ।।११५॥ क्रमांक अ० १७ ઈતિશ્રી વિશ્વકર્મા વિરચિત ક્ષીરાણુ નારદજીએ પૂછેલ ખંભમાન લક્ષણો શિલ્પ વિશારદ સ્થપતિ શ્રી પ્રભાશંકર ઓઘડભાઈ સોમપુરાએ રચેલી સુપ્રભા નામની ભાષા ટીકાને એકસો પંદરમે અધ્યાય ૧૧૫. ક્રમાંક અધ્યાય ૧૭.
.. इति श्री विश्वकर्मा विरचित क्षीरार्णवमें नारदजीके पूछे हुए स्तंभमान लक्षणका शिल्प विशारद श्री प्रभाशंकर ओघडभाई सोमपुराकी रचि हुी सुप्रभा नामकी भाषाटीका का एकसो पंद्रहवाँ अध्याय ।।११५॥ क्रमांक अध्याय १७