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अपराजितकारने वराटजातिके पांच प्रकार कहे हैं । १ वराट २ पुष्पक ३ श्रीपुंज ४ सर्वतोभद्र ५ सिंह । इन पाँचोंके १२०२ भेद कहे हैं ।
६ विमानजाति-चोरस तलको रथ उपरथको भद्रके थोडे उपांगोंवाले विमानजातिके प्रासाद जानना ।।
विमान छंदके पाँच प्रकार-१ विमान २ गरूड ३ ध्वज ४ विजय ५ गंधमादन । इन प्रत्येक पुष्पमाला घर आकारके लता श्रृंगवाले जानना । उनके प्रत्येक नामानुक्रमसे भेद कहे हैं । ३०१-४००-५००-६००-७०० इस तरह कुल पच्चीस सौ भेद कहे हैं।
७. मिश्रक जाति-नागर छेदका अनेक तिलकबाला तिलकोंसे शोभता मिश्र छंदका प्रासाद जानना । अनेक आकार रूपवाला जानना । अपराजितकार उसके अठारहसो भेद कहते हैं।
८ सावंधारा जाति-या सांधार जाति-व्युत्पत्तिकी दृष्टिसे स-अंधार-जो प्रासादों गर्भगृह प्रदक्षिणा मार्ग सहितके हों तो उन्हें सांधार कहा जाता है । जैसी रचनामें प्रकाशका बहुत कम अवकाश होता है । अिससे वे स-अंधार कहे जाते हैं । असे प्रदक्षिणा मार्गवाले सांधार प्रासाद नागर जातिमें बहुत स्पष्ट रीतसे बताया गया हैं । जिनको प्रदक्षणा मार्ग नहीं होते हैं । वैसे प्रासादोंको निरंधार प्रासाद कहा गया है ।
सांधार प्रासाद बाह्य भागके प्रमाणसे शिखर किया जाता है। जैसे सांधार प्रासादों गुजरात सौराष्ट्र, राजस्थान, मेवाड़में हैं। वैसे सांधार प्रासादो मध्यप्रदेश के खजुराहोंमें भी हैं। सोमनाथका महाप्रसाद सांधार जातिका है। सांधार जातिका तलदर्शन पत्र ७५ पर है। यह देखो!
अपराजितकार उसका स्वरूप बताते हैं। तलच्छंद जिसके विभक्त उपांगोंवाले है, उसमें गर्भगृह, दिवारें, भ्रमवला-जिसे भ्रमों क्रमयोगसे कहे हो उसके पर शिखर हो उसे सांधार छंदके प्रासाद् जानना ।
उसके सात प्रकार--१ केसरी २ नंदन ३ मन्दर ४ श्रीतरू ५ ईन्द्रनील ६ रत्नकूट ७ गरूड उन सातोंका अनुक्रमसे भेद कहा है। दो-तीन-एक-छ:तीन-सात और तीन जिस तरह मिलकर कुल पच्चीस भेद कहे हैं।
९. विमान नागर-नागर उपर छेदयुक्त लताशंगवाला हो वैसे प्रासादका विमान नागर छंद जानना ।
१०. विमान पुष्पक विमान नागर छंद उपर शिखरमें पुष्पक जैसा उरुश्रृंग होवे वैसा, वह सर्व कामनाओंको देनेवाला असा विमान पुष्पक छंदका प्रासाद जानना ।
११. वलभी-त्रलभी जाति के प्रासादों लतिन नागर छंदसे भी प्राचीन जातिके मालुम होते हैं। सौराष्ट्रमें उत्तर गुप्त कालके कदवार (प्रभासके पास) है, और पोरबंदर द्वारिकाके बिचके हर्पद माताके स्थानपर बहुत सामान्य रूपमें बलभी प्रासाद हैं।