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________________ २२ ४. भूमिज़ भूमिज प्रासादोंमें कई बार तलदर्शन अष्टभद्री या अष्टकर्णी या वृत्तसंस्थान पर आंका जाता है। पीठ और मंडोवर के सामान्य लक्षणों अनेकांडक नागर जैसे ही होते हैं। परन्तु शिखर प्रकृतिके मूलगत फर्क होनेसे उसका पूरा दृश्य विशिष्ट बनता है। उसे छाद्य-छज्जा क्वचित् होता है। उसके शिखरकी रेखा नागरीके जैसी लेकिन रेखाकी अंदर उत्तरोत्तर श्रृंगयुक्त होती है। शिखरके कर्ण प्रतिरथ और रथके उपांगमें एक पर दूसरा-तीसरा-इस तरह सात श्रृंगों उत्तरोत्तर चड़ाये हुए होते हैं। उसके शिखरको बालपंजर (बालंजर) के उपाङ्ग नहीं होते हैं। परन्तु भद्रके पर मालारूपमें लता खिंची हुई होती है। भद्रकी लताको माला कहते हैं ? इससे सिर्फ शिखरके भद्रमें कुडचल कंडारा होता है। और कर्ण और प्रतिरथके उपांगोंमें उत्तरोत्तर श्रृंगों (कूट) चढ़ाये हुए होते हैं। प्रत्येक अंगों पर कुंभी स्तंभीकायुक्त जंघा और उसके पर प्रहारके ऊँचे थरों करके फिर क्रमसे श्रृंग-कूट चढ़ाये हुए होते हैं। एक, दो, तीन, पाँच, सात इस तरह क्रमसे उत्तरोत्तर श्रृंगों शिखरके स्कंधतक चढ़ाये हुए होते हैं । स्कंध पर ग्रीवा, घंटा, पद्म, छत्र, चंद्रिकायुक्त आमलक होता है। उसके पर सर्वोपरि कलश होता है। उसके मंडोवरके थरोंमें छज्जा क्वचित ही होता है । छज्जे पर बरंडिका और केवालके घाटोवाले थर पर प्रहार होता है । वहाँसे शिखरका प्रारम्भ होता है । भद्रको रधिका कहते हैं । वह देवरूपसे अलंकृत होता है। उसके पर (नागरछंदके उद्गमको) शुरसेनक कहा जाता है नीचे बड़ा होता है । शिखरके कर्ण-प्रतिरथ पर चढ़ाये हुए श्रृंगोंके थरको स्तम्भकूट कहते हैं। नागरछंदकी तरह कंधसे नीचे ध्वजाधारके पीछे बाहर प्रतिरथमें निकाला हुआ होता है। भूमिज दृष्टांतोंमें आगे गूढमंडप अगर रंगमंडप किया जाता है । मालवा, महाराष्ट्रमें भूमिज जातिके प्रासाद देखने में आते हैं । क्वचित उतरकर्णाटकमें मी अपराजितकारने भूमिजके स्वरूपका वर्णन करते कहा है कि-बांसकी तरह उत्पन्न हुआ हो अिस तरह कूट बड़ेसे छोटे से क्रमसे चढाते जाना । दल विभक्ति उपांगोंके अंगोंसेयुक्त भूमिज छंदके प्रासाद जानना । अपराजितकारने भूमिजके तीन प्रकार कहे है । १ चोरस निषध-२ वृत्तकुमुद ३ अष्टाश्र-स्वस्तिक-और उसके दश-सात और आठ इस तरह तीन प्रकारसे भूमिज करना । अिन सबके ६२५ भेद कहते हैं । ५-वराट जाति-भूमिकाके क्रमसे जंघाहीन करते जाना । भूमिकायालो श्रृंग श्रृंगोंसे युक्त-बहुत श्रृंगोंवाला रेखा प्रतिरथ भद्र और प्रतिभद्र युक्त मंदार पुष्पिका और घंटावाला असी वराट जातिके लक्षण जानना ।
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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