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क्षीरार्णव अ-११३ क्रमांक अ.-१५ ____ अब मैं सुवर्णके प्रासादपुरुष जीवस्थानरूप आमलसारेमें पधरानेका विधि जो फलरूप है, वह कहता हूँ । स्कंधके शीर्षक पर आमलसारेमें तांबे या रूपेके पर्यंकपर (रेशमके धागेकी पाटी करना ।) बिछौना और तकिया कर सुवर्णका प्रासादपुरुष जिसके दाहिने हाथमें कमल और बायाँ हाथ तीन शिखावाली पताका लिया हुआ हाथ हृदयपर रखा हुआ हो, वैसी आकृतिको पधराकर संपूट रुप रखके (सुलाकर) आमलसारेमें त्रांबेके घीके भरे हुए कलश पात्रके उपर पर्धकको रखकर उसके उपर सुवर्णकी, प्रासाद पुरुषकीमूर्ति को संपूट जैसे रखके सुलाना । उसका प्रमाण कहता हूँ । प्रत्येक गजपर आवे आधे अंगुलका
और पचास हाथ तकका प्रासादका प्रमाणप्रासाद पुरुषका जानना । ३ अथध्वजदंडतथाचानन्तरं वक्ष्ये दंडमान अत: शृणु। एक हस्ते तु प्रासादे दंडपादुन
मंगुल ॥५३॥ अर्धागुल भवेद् वृद्धि पंचविंशति हस्तके।
प्रासाद भुषणे पुरुष अतोधपादवृद्धिप्रयत्नेन शतार्द्धमानके ॥५४॥ सुवर्ण प्रासाद पुरुष
હવે હું દંડમાન કહું છું તે સાંભળે. એક હાથના પ્રાસાદને પણ આંગળને જાડો ધ્યજદંડ કરે, બેથી પશ્ચીસ હાથ સુધીનાને પ્રત્યેક હાથે અર્ધા
(१३) आमलसारेमें मण्यमें गहरा, गोलमालको गढ़कर उसमें प्रथम गायके घीसे भरे हुए शेर शवाशेरके कलश ढकना बंधकर कपड़ा बाँधकर रखना । उसके पर पतली आरसकी पट्टी ट्रॅककर उसके पर सुवर्ण पुरुषकी गद्दीवाला चाँदीका पर्यंक रखकर उसमें प्रासाद पुरुषकी मूर्ति को सुलाना । उसकेपर दो तीन या चार अंगुल जितनी खाली जगह रहे इस तरह आरसकी पतली पट्टी संपूट की तरह कना। उसके बाद प्रतिष्टाके समय कलश स्थापन करनेके लिये कलशके सालके बराबर गहराई रखकर आमलसाराके बिचके सालको पूर दना । सुवर्णका प्रासाद पुरुष दव न जाय इस तरह ढंकना। संपूटर्की तरह खाली जगह रखना। सुवर्णके प्रासाद पुरुषको पधरानेके स्थान प्रासादमें छीयाके उपर शिखरी के घरों में शुकनासके उपर ऐसा भी कहा है