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क्षीरार्णव अ.-११३ क्रमांक भ.-१५ સંશય વગર જાણવું. બાંધણે વાલંજરના સર્વ નાશિકના નિકાળા જેટલા ગજે પાયે કે બાંધણું હોય તેટલા ગજે અર્ધા આંગળ પ્રમાણે રાખવા.
मान प्रमाणसे कम स्कंधवाला या अधिक मानके स्कंधवाला शिखर नहीं करना । शिखर जो स्कंधके मापसे कम हो तो कुलका नाश, मृत्यु और रोगका भय उत्पन्न होता है । मानके अनुसार करनेसे आयुष्य आरोग्य और सौभाग्यकी प्राप्ति होती है। उसमें जरा भी शंका न रखना | जो स्कंधके मूलमें (ध्वजादंड) प्रविष्ट हो तो उसे स्कंध वेध समझना । इस वेधसे शिल्पी और स्वामिका नाश होता है । यह बात निःसंशन जानना । स्कंधके पर वालंजरके सर्व नासिकके निकाले जितने गज' पर पायचा या स्कंध हो उतने गज पर आधे आंगुल प्रमाणमें रखना । २२-२३-२४.
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प्रनानि
स्कंशान्तरेखा सागरी
घंटास रेवा. -- -- वियर मी---यांत रेखा. रेखाका सामान्य स्वरुप-१ स्कंधांत (नागरी)–२ घण्टान्त–३ शिखान्त रेखा (विराट वल्लभीः)
अन्योन्ये कथिताश्चैव शुकनाशः मतः शृणु । छार्योर्चे स्कंध पर्यंतं मेकविंशति भाजितम् ॥२५॥ नंद त्रयोदश मध्ये प्रमाण पंचधामतं । कुमारं कपिरुद्रंच निर्धटा हि निशाचरः ॥२६॥ चंद्रधोषश्च विज्ञेयं शुकनाशंपंचधामतं ।
पणमेकं कुमारं च त्रिषणंकपिरुद्रकम् ॥२७॥ શિખરનું અન્ય અન્ય કહ્યું. હવે શુકનારાના લક્ષણ સાંભળે. છજા ઉપરથી