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अपराजितकार कहते हैं कि नागर रेखाके समान परन्तु शृङ्गोंके हित एकांडी शिखर रूचकादिसे उद्भूत होता है । अपराजितपृच्छाफार लतिन के पाँच स्वरूपके पाँच नाम कहते हैं । १ रूपक-चोरस-लंग पोरस २ भव-विभ
लतिन शिखर
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1 कलश. 2 चंद्रिका, 3 आमलसारक, 4 ग्रीवा, 5 रकंत्र, 6 रेखा, 7 कला, 8 भुमि-आमलक, 9 खंड, 10 कंठ, 11 वरंडिका, 12 वेणुकोश 13 मध्यलतापंजर 14 लतापंचक 15 बालपंजर-लतिनशिखर
३ वृत-पद्ममालाधर ४ लम्बगोल-मलयमकरध्वज ५ अष्टान वनक-स्वस्तिक इस तरह एक द्वारके पच्चीश भेद कहे हैं।