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________________ प्रकाश या रंगोंकी सुंदर रचनासे शोभती थी, वैसी कलाको देखते ही प्रसंशक , आनंद विभोर हो उठता था,, उसके स्थान पर जिसके बारेमें कुछ भी समझमें न आये ऐसी टेढी मेढी रेखाओं या शण जैसे तुच्छ द्रव्योंमें रंगके थथेडेमें कल्पनाको उतारकर उसका गुणगान कर कलाका सत्यानाश करनेवाले मोर्डन आर्टके नामसे जगतकी वंचना कर रहे हैं। ऐसी विकृतिको देखकर घृणा और दुःख की लागणी होती है । . - जिस कलाको दूरसे देखते ही प्रेक्षक उसके गुण और मर्मको जानकर आनंदित होता था, उसके बदले यह कही जाती मोडर्न आर्ट नामकी कृति प्रेक्षकको ‘यह क्या चीन है ? ' यह नहीं समझा सकती है। ऐसी विकृतिको 'आर्ट' के नाम पर प्रदर्शनोंमें दिखाकर जगतको उल्लू बनाया जाता है। ऐसी कलाविहीन विकृतिके प्रवाहके सामने देशकी प्राचीन कलावांच्छओंको झंवेश उठाकर भारतीय कलाकी सुरक्षा करनेका अपना फर्ज नहीं भूलना चाहिये । भारतके प्रासादकी जातियाँ प्रासाद वास्तुग्रंथों में मुख्य विषयमें जातिके बारे में जानना अति आवश्यक है। वास्तुग्रंथों में बतायी हुई धार्मिक विधि और ज्योतिष विषय और ऐसी दूसरी बाबतों की लम्बी चर्चा में स्थापत्यके अभ्याशीऑकी कम रूचि होती है। क्षीरार्णव-अपराजितपृच्छा और झानरत्नकोष जैसे नागरादि शिल्प ग्रंथों में भारतीय प्रदेशोंमें प्रवर्तमान प्रासादकी चौदह जातियाँ कही गई हैं। वास्तुराज, कास्तुमंजरी और प्रासाद मंडन जैसे पन्द्रहवीं-सोलहवीं सदीके ग्रन्थों में भी उसकी नोंध ली गई है। मण्डनने चौदह में से आठ जातिओंको श्रेष्ठ कहा है। अपराजितपृच्छाकारने चौदह जातियोंके बारेमें पूरे चार अध्यायों (१०३ से १०६) विगतसे दिये हुए हैं। १ नागर, २ द्रविड, ३ लतिन, ४ भूमिज, ५ वराद, ६ विमान, ७ मिश्र, ८ सांधार, ९ विमान नागर, १० विमान पुष्पक ११ वलभी १२. फांसनाकार (नपुंसकादि), १३ सिंहावलोकन, १४ रथारूह ।। .. समरांगण सूत्रधार अ० ५२ में इस विषयकी चर्चा करता एक छोटा-सा अध्याय है। लेकिन उसमें चौदह जातियाँ नहीं कई हैं और उस विषय के पर विस्तृत चर्चा भी जातिके भेद करके नहीं कि गई है। भूमिज, लतिन, नागर, द्रविड, घलभी जातियाँ कही गई हैं। लेकिन उसमें अपराजितपृच्छाकार की तरह व्याख्या नहीं की गई है। . लक्षणसमुच्चयमें छः प्रादेश प्रकार कहे हैं। १ कलिंङ्ग, २ नागर, ३
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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