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________________ भीषि० भ्यः भुजि० ने भुवोऽ० वा भूजेः ष्णुक भूतव० वा भूते भूयोऽल् भूषा० नः भृगो नाम्नि भूगो० वाम भृती० णः भृङ्ग० नि स्नि भूषा० दि भ्राज्य० ष्णुः स्वादिभ्यो वा मथलपः मन्याणिन् ५।२।२८ | ५।३१११५॥ ५।२।५३।। ५।१।११६।। ५।१।१४७।। ५४१३६॥ ५२३२८१|| ५।३।३७।। |५|१|१४४।। ५।३।१०१ ।। ५।१।१०६।। ५१२वा य एच्चातः यजि० कः यजि० ० नः ५।२।४७॥ ५३८५॥ ५३३।६५|| यजे ग्रहः यत्कर्म० तः ५।३।१२५।। यथा० त्तरे ५४५१।। ५|१|३०|| यम ० र्गात् याज्या० चि ५।११२६॥ मनूव तु माझ्यद्यतनी माने मूर्ति० घनः मूल० दयः मृगयेना० मेघत० खः यायावर: मावतो० वः युज० नः युदुद्रो: ५।३।१०६।। | रजः० ग्रहः रम्यादि० र ५।३।१२८ ।। ५।३।६४। ५२३०॥ ५।४।२।। |४|१०|| ५।३।२३॥ ५२४२॥ XIII ५२१२४५॥ युपू० र्घञ् युवर्ण० ह ५।१।१०४ ।। श१रा११॥ ५|४|४२॥ २|| राजघः रात्रौ० द्य रुच्या ० व्यम् रोरुपसर्गात् ललाट० कः लष०पदः लिप्स्यसिद्धी लिम्पविन्दः लिहादिभ्य लवस्-तः वयः ०शीले वत्स्यति दि वत्स्र्यति० ले वर्योप ये o वर्ष ● [० ग्रहः वर्षा ० क्लीबे वहाभ्रालिहः वहां करणे वाद्यत० दौ बाधारे स्था वा वेत्तेः सुः व हेतु क्तः दिच्छो नह विद्० णम् विधि० ने विन्द्विच्छ्र विपरि● - ५४/५५॥ ५।२।५०|| ५।३३५६|| ५।३।५४।। ५१३।२८।। | वृदुभिक्षि० कः (*) ५१६८ || || वृष्टिमा० वा ५।३।१३।। देति किंतु विश० क्ष्ण्ये विशेषा श्रे बुगो वस्त्रे ५।११५०॥ १२६७॥ ५|२|२४|| शा ५|२| ६ || ५१।६।। वेर्दहः ५।३।२२| | | वेविच० नः ५।१।१२५|| वेश्व द्रो: . ५२ ४१ ।। वैणे क्वणः ५|३|१०|| तात्प्राक् बोद: ५१०६० वेयि ० नम ५।३।२६।। ५।१।१२३ | | | व्याप्ये० स्थाणे० नम् ५|१|३४|| व्युपाच्छीङ: वाकाङ्क्षायाम् ५|३|१०|| व्रताभीक्ष्ण्ये वाचंयमो० ते शंसं ०. कु वा ज्वला ः सि० यात् वाटाव्यात् वादेभ० कः ५।१।११५ ।। ४२११६२॥ बेरश० ने व्यञ्ज० घन् व्यतिहा० नः त्रः ५|३|१|| ५।४।२५।। ५।१।३२।। ५। ३ ५० ।। व्याप्याचेवात् व्याप्यादाधारे व्यव० मद्भयः व्यपाभे० षः व्ययोद्रोः णे O व्याघ्रा० सोः ५।३।१०३ ।। शक० तुम् ५।२।६७ || शकि० त् ५।२।१५।। शकृत्० गः शक्तार्हो ० व शत्रा० सस्यौ ५।१।२१।। ५।२।२२।। ५|३|२|| ५३१८६॥ ५४।५४।। ५|४|२८|| शात्रु नः ५|२|३४|| शी० लुः शीलिका० ण ५।२।५५।। ५४८१॥ शुनी० ट्वे: ५२५॥ शुष्क० व ५/३४५२॥ शुक० कण ५|२|७०॥ | शूव० राह: शमष्ट० ण् समौ नात्य: सारे पात् ५|४|५७॥ | शेषे० यदी ५।२७५॥ शोका० के ५।२।३।। ५।३।६।। ५।२।६४।। ५।२५६ ॥ ५। २५४ ॥ ५।३।२७॥ ५|४|११|| ५१३१६१।। संघेऽनूर्ध्व संचाय्य० तो संनि० यमः ५।३।४७॥ संपरि० दः ५२६०|| | संप्रदा० यः ५३|३०|| ५। १५७॥ ५।४।७१॥ ५३॥ संवेः सृजः ५ | १|४|| ५।३।७७॥ संस्तो: ५११५७॥ | सति ५३१३२ ।। ५।३।११६ ।। ५।३।११६ || धूसद० वा श्रो श्रो वायु० ते श्वादिभ्यः ५३ १०५|| ५४१६०॥ ५।१।२६ ॥ ५।१।१००॥ श्लिष० क्तः षितोऽङ् संख्याह० टः संगते म् २४ सतीद्वार्थात् ५४|३५|| ५१२२०॥ ५२४६|| ५।१।१३४ ।। ५।१।१३४॥ ५२४१५२॥ सत्सामी० वा सन्भिक्षा० रु सप्तमी० के सप्तमी० के सप्त ० यदि सप्तम्य० त्तिः सप्तम्याः सप्तम्यु० समः रूयः समः ० ज्वरे: समज० णः समत्य० रः ५।१।११६ ।। समनु० धः समिणा० गः ५/४१६० ॥ ५। २४० ॥ समुदो० शौ ५२३शा | रामो मुष्टौ ५।३११४१॥ ५|२|३७| ५।१।७३१ संप्राद्वसात् संभाव० क्तौ संभावत् संमद० हर्षो ढे ५/४/२० ॥ ५।१।१४३।। ५॥२१॥ ||३|२०|| ५।३।६२।। ५। १४९॥ ५।३।१०७।। ५।१।१०२॥ ५।१।५।। ५|३|८०|| ५|१|२२|| ५।३।२५।। ५।२५८॥ ५।१।१५।। ५१२।६१ ।। ४१२२॥ ५२४|४| ५।३।३३।। ५।२५७॥ ५।३।६६।। २१६॥ ५|४|२४|| ५।४।१। ५।२।३३।। ५।३।१२।। ५२४१३०॥ ५१४|३४|| ५४४|६|| ५|१|१६|| ५।४।२१।। ५१२७७॥ २०५६।। ITERI शरा६२शा ५।२।६३ ।। ५१६३॥ ५|३|३०| ५३१५८॥
SR No.008414
Book TitleSwopagnyashabda maharnavnyas Bruhannyasa Part 5
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorLavanyasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size9 MB
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