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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार-कलश [ भगवान् श्री कुन्द-कुन्द "परं एक दृष्टम् स्यात्'' [ परं] उत्कृष्ट है ऐसा एकं] शुद्ध चैतन्यद्रव्य [ दृष्टम् ] दृष्टिगोचर [ स्यात्] होता है। भावार्थ इस प्रकार है कि वर्णादिक और रागादिक विद्यमान दिखलाई पड़ते हैं तथापि स्वरूप अनुभवनेपर स्वरूपमात्र है, विभावपरिणतिरूप वस्तु तो कुछ नही।। ५-३७।। [उपजाति] निर्वर्त्यते येन यदत्र किञ्चित् तदेव तत्स्यान्न कथंचनान्यत्। रुक्मेण निर्वृत्तमिहासिकोशं पश्यन्ति रुक्मं न कथंचनासिम्।।६-३८।। [दोहा] जिस वस्तु से जो बने, वह हो वही न अन्य। स्वर्णम्यानतो स्वर्ण है, असि है उससे अन्य।।३८ ।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "अत्र येन यत् किञ्चित् निर्वर्त्यते तत् तत् एव स्यात्, कथञ्चन न अन्यत्'' [अत्र] वस्तुके स्वरूपका विचार करनेपर [येन] मूलकारणरूप वस्तुसे [ यत् किञ्चित्] जो कुछ कार्य-निष्पत्तिरूप वस्तुका परिणाम [निर्वर्त्यते] पर्यायरूप नीपजता है , [तत्] जो नीपजा है वह पर्याय [तत् एव स्यात् ] नीपजता हुआ जिस द्रव्यसे नीपजा है वही द्रव्य है। [कथञ्चन न अन्यत् ] निश्चयसे अन्य द्रव्यरूप नहीं हुआ। वही दृष्टांत द्वारा कहते हैं-''इह रुक्मेण असिकोशं निर्वृत्तम्'' [इह] प्रत्यक्ष है कि [ रुक्मेण] चाँदी धातुसे [असिकोशं] तलवारकी म्यान [निर्वृत्तम्] घड़कर मौजूद की सो 'रुक्मं पश्यन्ति, कथञ्चन न असिम्' [रुक्म] जो म्यान मौजूद हुई वह वस्तु तो चाँदी ही है ऐसा [ पश्यन्ति ] प्रत्यक्षरूपसे सर्व लोक देखता है और मानता है। [कथञ्चन] 'चाँदीकी तलवार' ऐसा कहनेमें तो कहा जाता है तथापि [न असिम् ] चाँदीकी तलवार नहीं है। भावार्थ इस प्रकार है कि चाँदीकी म्यानमें तलवार रहती है। इस कारण 'चाँदीकी तलवार' ऐसा कहने में आता है। तथापि चाँदीकी म्यान है, तलवार लोहेकी है, चाँदीकी तलवार नहीं है।। ६-३८ ।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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