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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates २८ समयसार-कलश [भगवान् श्री कुन्द-कुन्द [ मालिनी] इति परिचिततत्त्वैरात्मकायैकतायां नयविभजनयुक्त्यात्यन्तमुच्छादितायाम्। अवतरति न बोधो बोधमेवाद्य कस्य स्वरसरभसकृष्टः प्रस्फुटन्नेक एव ।। २८।। [हरिगीत] इस आतमा अर देह के एकत्व को नय युक्ति से। निर्मूल ही जब कर दिया तत्वज्ञ मुनिवर देव ने।। यदि भावना है भव्य तो फिर क्यों नहीं सद्बोध हो। भावोल्लसित आत्मार्थियों को नियम से सद्बोध हो ।।२८ ।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "इति कस्य बोधः बोधम् अद्य न अवतरति'' [इति] इस प्रकार भेद द्वारा समझानेपर [ कस्य] त्रैलोक्यमें ऐसा कौन जीव है जिसकी [ बोधः] बोध अर्थात् ज्ञानशक्ति [ बोधम् ] स्वस्वरूपकी प्रत्यक्ष अनुभवशीलरूपतासे [अद्य] आज भी [न अवतरति] नहीं परिणमनशील होवे ? भावार्थ इस प्रकार है कि जीव-कर्मका भिन्नपना अति ही प्रगट कर दिखाया , उसे सुननेपर जिस जीवको ज्ञान नहीं उत्पन्न होता उसको उलाहना है। किस प्रकारसे भेद द्वारा समझानेपर ? उसी भेद-प्रकार को दिखलाते हैं-''आत्मकायैकतायां परिचिततत्त्वैः नयविभजनयुक्त्या अत्यन्तम् उच्छादितायाम्'' [आत्म] चेतनद्रव्य और [ काय] कर्मपिंडका [ एकतायां] एकत्वपनाको। [ भावार्थ इस प्रकार है कि जीव-कर्म अनादि बंधपर्यायरूप एकपिंड है उसको।] परिचिततत्त्वै:- सर्वज्ञैः, विवरण- [परिचित] प्रत्यक्ष जाना है [ तत्त्वैः ] जीवादि समस्तद्रव्योंके गुण-पर्यायोंको जिन्होंने ऐसे सर्वज्ञदेवके द्वारा [नय] द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिकरूप पक्षपातके [विभजन] विभाग-भेदनिरूपण, [युक्त्या ] भिन्नस्वरूप वस्तुको साधना, उससे [अत्यन्तं] अति ही निःसंदेहरूपसे [ उच्छादितायाम्] जिस प्रकार ढंकी हुई निधिको प्रगट करते हैं उसी प्रकार जीवद्रव्य प्रगट ही है, परन्तु कर्मसंयोगसे ढंका हुआ होनेसे मरणको प्राप्त हो रहा था सो वह भ्रान्ति परमगुरु श्री तीर्थंकरदेवकेउपदेश सुननेपर मिटती है, कर्मसंयोगसे भिन्न शुद्ध जीवस्वरूपका अनुभव होता है, ऐसा अनुभव सम्यक्त्व है। कैसा है बोध ? "स्वरसरभसकृष्ट:'' [ स्वरस] ज्ञानस्वभावका [ रभस] उत्कर्ष-अति ही समर्थपना उससे [कृष्ट:] पूज्य है। और कैसा है ? "प्रस्फुटन्' प्रगटरूप है। और कैसा है ? "एकः एव'' निश्चयथी चैतन्यरूप है।। २८ ।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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