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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates २५२ समयसार-कलश [भगवान् श्री कुन्द-कुन्द [ उपजाति] स्वशक्तिसंसूचितवस्तुतत्त्वै र्व्याख्या कृतेयं समयस्य शब्दैः। स्वरूपगुप्तस्य न किञ्चिदस्ति कर्तव्यमेवामृतचन्द्रसूरेः ।। १५-२७८।। [हरिगीत] ज्यों शब्द अपनी शक्ति से ही तत्त्व प्रतिपादन करें । त्यों समय की यह व्याख्या भी उन्हीं शब्दों ने करी।। निजरूप में ही गुप्त अमृतचन्द्र श्री आचार्य का । इस आत्मख्याती में अरे कुछ भी नहीं कतृत्व है।।२७८ ।। खंडान्वय सहित अर्थः- "अमृतचन्द्रसूरेः किञ्चित् कर्तव्यम् न अस्ति एव'' [ अमृतचन्द्रसूरेः ] ग्रंथकर्ताका नाम अमृतचंद्रसूरि है, उनका [ किञ्चित् ] नाटक समयसारका [ कर्तव्यम् ] करना [न अस्ति एव] नहीं है। भावार्थ इस प्रकार है कि नाटक समयसार ग्रंथकी टीकाका कर्ता अमृतचन्द्र नामक आचार्य प्रगट हैं तथापि महान् हैं, बड़े हैं, संसारसे विरक्त है, इसलिए ग्रन्थ करनेका अभिमान नहीं करते। कैसे हैं अमृतचन्द्रसूरि ? "स्वरूपगुप्तस्य'' द्वादशांगरूप सूत्र अनादिनिधन है, किसीने किया नहीं है ऐसा जानकर अपनेको ग्रन्थका कर्तापना नहीं माना है जिन्होंने ऐसे हैं। इस प्रकार क्यों है ? कारण कि "समयस्य इयं व्याख्या शब्दैः कृता'' [ समयस्य] शुद्ध जीव स्वरूपकी [इयं व्याख्या] नाटक समयसार नामक ग्रंथरूप व्याख्या [शब्दैः कृता] वचनात्मक ऐसी शब्दराशिसे की गई है। कैसी है शब्दराशि ? ""स्वशक्तिसंसूचितवस्तुतत्वैः'' [ स्वशक्ति] शब्दोंमें है अर्थको सूचित करनेकी शक्ति उससे [ संसूचित] प्रकाशमान हुआ है [ वस्तु] जीवादि पदार्थोंका [ तत्त्वैः ] द्रव्य-गुण-पर्यायरूप, उत्पाद-द्रव्य-ध्रौव्यरूप अथवा हेय-उपादेयरूप निश्चय जिसके द्वारा ऐसी है शब्दराशि।।१५-२७८ ।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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