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कहान जैन शास्त्रमाला]
स्याद्वाद-अधिकार
२२५
[शार्दूलविक्रीडित] प्रत्यक्षालिखितस्फुटस्थिरपरद्रव्यास्तितावञ्चितः स्वद्रव्यानवलोकनेन परितः शून्यः पशुर्नश्यति। स्वद्रव्यास्तितया निरूप्य निपुणं सद्यः समुन्मज्जता स्याद्वादी तु विशुद्धबोधमहसा पूर्णो भवन् जीवति।।६-२५२ ।।
[हरिगीत] इन्द्रियों से जो दिखे ऐसे तनादि पदार्थ में । एकत्व कर हों नष्ट जन निजद्रव्य को देखे नहीं।। निजद्रव्य को जो देखकर निजद्रव्य में ही रत रहें। वे स्याद्वादि ज्ञानसे परिपूर्ण हो जीवित रहें।।२५२।।
खंडान्वय सहित अर्थः- भावार्थ इस प्रकार है कि कोई एकान्तवादी मिथ्यादृष्टि ऐसा है जो पर्यायमात्रको वस्तुरूप मानता है, इसलिए ज्ञेयको जानते हुए ज्ञेयाकार परिणमी है जो ज्ञानकी पर्याय उसका, ज्ञेयके अस्तित्वपनेसे अस्तित्वपना मानता है, ज्ञेयसे भिन्न निर्विकल्प ज्ञानमात्र वस्तुको नहीं मानता है। इससे ऐसा भाव प्राप्त होता है कि परद्रव्यके अस्तित्वसे ज्ञानका अस्तित्व है, ज्ञानके अस्तित्वसे ज्ञानका अस्तित्व नहीं है। उसके प्रति उत्तर इस प्रकार है कि ज्ञानवस्तुका अपने अस्तित्वसे अस्तित्व है। उसके भेद चार हैं - ज्ञानमात्र जीववस्तु स्वद्रव्यपने अस्ति, स्वक्षेत्रपने अस्ति, स्वकालपने अस्ति, स्वभावपने अस्ति। परद्रव्यपने नास्ति, परक्षेत्रपने नास्ति, परकालपने नास्ति, परभावपने नास्ति। उनका लक्षण - स्वद्रव्य - निर्विकल्पमात्र वस्तु, स्वक्षेत्र - आधारमात्र वस्तुका प्रदेश, स्वकाल - वस्तुमात्रकी मूल अवस्था, स्वभाव - वस्तुकी मूलकी सहज शक्ति। परद्रव्य - सविकल्प भेद-कल्पना, परक्षेत्र - जो वस्तुका आधारभूत प्रदेश निर्विकल्प वस्तुमात्ररूपसे कहा था वही प्रदेश सविकल्प भेद कल्पनासे परप्रदेश बुद्धिगोचररूपसे कहा जाता है। परकाल - द्रव्यकी मूलकी निर्विकल्प अवस्था, वही अवस्थान्तर भेदरूप कल्पनासे परकाल कहलाता है। परभाव - द्रव्यकी सहज शक्तिके पर्यायरूप अनेक अंश द्वारा भेदकल्पना, उसे परभाव कहा जाता है। “पशु: नश्यति'' एकान्तवादी मिथ्यादृष्टि जीव जीवस्वरूपको नहीं साध सकता है। कैसा है ? ''परितः शून्यः'' सर्व प्रकार तत्त्वज्ञानसे शून्य है। किस कारणसे ? "स्वद्रव्यानवलोकनेन'' [ स्वद्रव्य ] निर्विकल्प वस्तुमात्रके [अनवलोकनेन] नहीं प्रतीति करने के कारण। और कैसा है ? ''प्रत्यक्षालिखितस्फुटस्थिरपरद्रव्यास्तितावञ्चितः'' [ प्रत्यक्ष ] असहायरूपसे [ आलिखित] लिखे हुएके समान[ स्फुट] जैसा का तैसा [स्थिर] अमिट जो [ परद्रव्य ] ज्ञेयाकार ज्ञानका परिणाम उससे माना जो [अस्तिता] अस्तित्व उससे [वञ्चितः] ठगा गया है ऐसा है एकान्तवादी मिथ्यादृष्टि जीव।"तु स्याद्वादी पूर्णो भवन् जीवति''[तु] एकान्तवादी कहता है उस प्रकार नहीं है [ स्याद्वादी] सम्यग्दृष्टि जीव [पूर्णो भवन] पूर्ण होता हुआ [ जीवति] ज्ञानमात्र जीववस्तु है ऐसा साध सकता है-अनुभव कर सकता है। किसके द्वारा ? 'स्वद्रव्यास्तितया'' [ स्वद्रव्य ] निर्विकल्प
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