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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १९२ समयसार-कलश [भगवान् श्री कुन्द-कुन्द [रथोद्धता] यत्तु वस्तु कुरुतेऽन्यवस्तुनः किञ्चनापि परिणामिनः स्वयम्। व्यावहारिकदृशैव तन्मतं नान्यदस्ति किमपीह निश्चयात्।। २२-२१४।। [रोला] स्वयं परिणमित एक वस्तु यदि पर वस्तु का। कुछ करती है - ऐसा जो माना जाता है।। वह केवल व्यवहार कथन है निश्चय से तो। एक दूसरे का कुछ करना शक्य नहीं है।।२१४ ।। खंडान्वय सहित अर्थ:- कोई आशंका करता है कि जैनसिद्धान्तमें भी ऐसा कहा है कि जीव ज्ञानावरणादि पुद्गलकर्मको करता है, भोगता है। उसका समाधान इस प्रकार है कि झूठे व्यवहारसे कहनेको है। द्रव्यके स्वरूपका विचार करनेपर परद्रव्यका कर्ता जीव नहीं है। "तु यत् वस्तु स्वयम् परिणामिनः अन्यवस्तुनः किञ्चन अपि कुरुते'' [तु] ऐसी भी कहावत है कि [ यत् वस्तु] जो कोई चेतनालक्षण जीव द्रव्य [स्वयम् परिणामिनः अन्यवस्तुनः ] अपनी परिणामशक्तिसे ज्ञानावरणादिरूप परिणमता है ऐसे पुद्गलद्रव्यका [किञ्चन अपि कुरुते] कुछ करता है ऐसा कहना, "तत् व्यावहारिकदृशा'' [ तत्] जो कुछ ऐसा अभिप्राय है वह सब [ व्यावहारिकदृशा] झूठी व्यवहारदृष्टिसे है। "निश्चयात् किम् अपि नास्ति इह मतं'' [निश्चयात्] वस्तुके स्वरूपका विचार करनेपर [ किम् अपि नास्ति] ऐसा विचार- ऐसा अभिप्राय कुछ नहीं है। भावार्थ इस प्रकार है कि कुछ ही बात नहीं, मूलसे झूठ है [ इह मतं] ऐसा सिद्धान्त सिद्ध हुआ।। २२-२१४ ।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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