________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
कहान जैन शास्त्रमाला]
सर्वविशुद्धज्ञान-अधिकार
१८१
किसीके द्वारा किया हुआ होता है। ऐसा है किस कारणसे ? 'कार्यत्वात्'' कारण कि घटके समान उपजता है, विनशता है। इसलिए प्रतीति ऐसी जो करतूतिरूप है। [च ] तथा ''तत् जीवप्रकृत्योः द्वयोः कृतिः न'' [ तत् रागादि अशुद्ध चेतन परिणमन [ जीव ] चेतनद्रव्य [ प्रकृत्योः] पुद्गलद्रव्य ऐसे [द्वयोः ] दो द्रव्योंकी [ कृतिः न ] करतूति नहीं है। भावार्थ इस प्रकार है कि कोई ऐसा मानेगा कि जीव तथा कर्मके मिलनेपर रागादि अशुद्ध चेतन परिणाम होता है, इसलिए दोनों द्रव्य कर्ता है ? समाधान इस प्रकार है कि दोनों द्रव्य कर्ता नहीं है, कारण कि रागादि अशुद्ध परिणामोंका बाह्य कारण-निमित्तमात्र पुद्गलकर्मका उदय है। अन्तरंग कारण व्याप्य-व्यापकरूप जीवद्रव्य विभावरूप परिणमता है। इसलिए जीवका कर्तापना घटित होता है, पुद्गलकर्मका कर्तापना घटित नहीं होता है। कारण कि "अज्ञायाः प्रकृतेः स्वकार्यफलभुग्भावानुषङ्गात्'' [अज्ञायाः] अचेतन द्रव्यरूप है जो [प्रकृतेः] ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म, उसके [स्वकार्य ] अपनी करतूतिके [फल ] सुख-दुःखके [भुग्भाव ] भोक्तापनेका [अनुषङ्गात् ] प्रसंग प्राप्त होता है। भावार्थ इस प्रकार है कि जो द्रव्य जिस भावका कर्ता होता है वह उस द्रव्यका भोक्ता भी होता है। ऐसा होनेपर रागादि अशुद्ध चेतन परिणाम जो जीव कर्म दोनोंने मिलकर किया होवे तो दोनों भोक्ता होंगे सो दोनों भोक्ता तो नहीं है। कारण कि जीवद्रव्य चेतन है तिस कारण सुख-दुःखका भोक्ता होवे ऐसा घटित होता है, पुद्गलद्रव्य अचेतन होनेसे सुख:दुखका भोक्ता घटित नहीं होता। इसलिए रागादि अशुद्ध चेतनपरिणमनका अकेला संसारी जीव कर्ता है, भोक्ता भी है। इसी अर्थको और गाढ़ा-पक्का करते हैं- एकस्याः प्रकृतेः कृति: न'' [ एकस्याः प्रकृतेः] अकेले पुद्गलकर्मकी [ कृतिः न] करतूति नहीं है। भावार्थ इस प्रकार है कि कोई ऐसा मानेगा कि रागादि अशुद्ध चेतनपरिणाम अकेले पदगलकर्मका किया है? उत्तर ऐसा है कि ऐसा भी नहीं है। कारण कि 'अचित्त्वलसनात" अनुभव ऐसा आता है कि पुदगलकर्म अचेतनद्रव्य है, रागादि परिणाम अशुद्ध चेतनारूप हैं। इसलिए अचेतन द्रव्यका परिणाम अचेतनरूप होता है, चेतनरूप नहीं होता। इस कारण रागादि अशुद्ध परिणामका कर्ता संसारी जीव है, भोक्ता भी है।। ११-२०३।।
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com