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कहान जैन शास्त्रमाला]
निर्जरा-अधिकार
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[शङ्कां] भयको [विहाय] छोड़कर। जिस प्रकार भय छूटता है उस प्रकार कहते हैं"निसर्गनिर्भयतया'' [ निसर्ग] स्वभावसे [निर्भयतया] भयसे रहितपना होनेसे। भावार्थ इस प्रकार है – सम्यग्दृष्टि जीवोंका निर्भय स्वभाव है, इस कारण सहज ही अनेक प्रकारके परिषह उपसर्गका भय नहीं है। इसलिए सम्यग्दृष्टि जीवको कर्मका बन्ध नहीं है, निर्जरा है। कैसे है निर्भयपना ? "स्वयं'' ऐसा सहज है।। २२–१५४ ।।
[शार्दूलविक्रीडित] लोक: शाश्वत एक एष सकलव्यक्तो विविक्तात्मनश्चिल्लोकं स्वयमेव केवलमयं यल्लोकयत्येककः। लोकोऽयं न तवापरस्तदपरस्तस्यास्ति तद्भी: कुतो निश्शंकः सततं स्वयं स सहजं ज्ञानं सदा विन्दति।। २३-१५५ ।।
[हरिगीत] इहलोक अर परलोक से मेरा न कुछ सम्बन्ध है। अर भिन्न पर से एक यह चिल्लोक ही मम लोक है।। जब जानते यह ज्ञानीजन तब होंय क्यों भयभीत वे। वे तो सतत निःशंक हो निजज्ञान का अनुभव करें।।१५५ ।।
खंडान्वय सहित अर्थ:- “सः सहजं ज्ञानं स्वयं सततं सदा विन्दति'' [ सः] सम्यग्दृष्टि जीव [ सहजं] स्वभाव ही से [ज्ञानं] शुद्ध चैतन्य वस्तुको [विन्दति] अनुभवता है - आस्वादता है। कैसे अनुभवता है ? [ स्वयं] अपनेमें आपको अनुभवता है। किस काल ? [ सततं] निरंतररूपसे [ सदा] अतीत, अनागत, वर्तमानमें अनुभवता है। कैसा है सम्यग्दृष्टि जीव ? ''निःशङ्कः'' सात भयोंसे रहित है। कैसा होनेसे ? 'तस्य तगीः कुतः अस्ति'' [तस्य] उस सम्यग्दृष्टिके [ तद्भीः] इहलोकभय, परलोकभय [ कुतः अस्ति] कहासे होवे ? अपितु नहीं होता। जैसा विचार करते हुए भय नहीं होता वैसा कहते है-'तव अयं लोक: तदपर: अपर: न'' [तव] भो जीव! तेरा [अयं लोक:] विद्यमान है जो चिद्रूपमात्र वह लोक है। [तद्-अपर:] उससे अन्य जो कुछ है इहलोक, परलोक। विवरण:- इहलोक अर्थात् वर्तमान पर्याय। उसमें ऐसी चिन्ता कि पर्याय पर्यंत सामग्री रहेगी कि नहीं रहेगी। परलोक अर्थात् यहाँसे मरकर अच्छी गतिमें जावेंगे कि नहीं जावेंगे ऐसी चिन्ता। ऐसा जो [ अपर:] इहलोक, परलोक पर्यायरूप [न] जीवका स्वरूप नहीं है। "यत् एष: अयं लोक: केवलं चिल्लोकं स्वयं एव लोकयति'' [ यत् ] जिस कारणसे [एष: अयं लोक:] अस्तिरूप है जो चैतन्यलोक वह [केवलं] निर्विकल्प है। [ चिल्लोकं स्वयं एव लोकयति] ज्ञानस्वरूप आत्माको स्वयं ही देखता है। भावार्थ इस प्रकार है कि जो जीवका स्वरूप ज्ञानमात्र सो तो ज्ञानमात्र ही है। कैसा है चैतन्यलोक ? ''शाश्वतः'' अविनाशी है। और कैसा है ? "एकक:'' एक वस्तु है। और कैसा है ? "सकलव्यक्तः'' [ सकल ] त्रिकालमें [ व्यक्त:] प्रगट है। किसको प्रगट है ?
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