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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १२६ समयसार-कलश [भगवान् श्री कुन्द-कुन्द "सहजबोधकलासुलभं'' [ सहजबोध] शुद्ध ज्ञान उसका [कला] निरंतर अनुभव उसके द्वारा [सुलभं] सहज ही प्राप्त होता है। भावार्थ इस प्रकार है कि शुभ अशुभरूप हैं जितनी क्रिया उनका ममत्व छोड़कर एक शुद्ध स्वरूप-अनुभव कारण है।। ११-१४३ ।। [उपजाति] अचिन्त्यशक्तिः स्वयमेव देवश्चिन्मात्रचिन्तामणिरेष यस्मात्। सर्वार्थसिद्धात्मतया विधत्ते ज्ञानी किमन्यस्य परिग्रहेण।। १२-१४४ ।। [दोहा] अचिंत्यशक्ति धारक अरे चिन्तामणि चैतन्य। सिद्धारथ यह आतमा ही है कोई न अन्य।। सभी प्रयोजन सिद्धहैं फिर क्यों पर की आश। ज्ञानी जाने यह रहस करे न पर की आश।।१४४।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "ज्ञानी [ज्ञानं] विधत्ते'' [ज्ञानी] सम्यग्दृष्टि जीव [ ज्ञानं] निर्विकल्प चिद्रूप वस्तुको [ विधत्ते] निरंतर अनुभवता है। क्या जानकर ? "सर्वार्थसिद्धात्मतया'' [ सर्वार्थसिद्ध ] चतुर्गति संसारसंबंधी दुःखका विनाश, अतीन्द्रिय सुखकी प्राप्ति [ आत्मतया] ऐसा कार्य सिद्ध होता है जिससे ऐसा है शुद्ध ज्ञानपद। “अन्यस्य परिग्रहेण किम्'' [अन्यस्य] शुद्धस्वरूप अनुभव उससे बाह्य हैं जितने विकल्प। विवरण- शुभ-अशुभ क्रियारूप अथवा रागादि विकल्परूप अथवा द्रव्योंके भेदविचाररूप ऐसे हैं जो अनेक विकल्प उनका [परिग्रहेण] सावधानरूपसे प्रतिपालन अथवा आचरण अथवा स्मरण उसके द्वारा [ किम् ] कौन कार्यसिद्धि , अपितु कोई कार्यसिद्धि नहीं। ऐसा किस कारणसे ? “यस्मात् एष: स्वयं चिन्मात्रचिन्तामणि: एव'' [ यस्मात् ] जिस कारणसे [ एष:] शुद्ध जीववस्तु [ स्वयम्] आपमें [चिन्मात्रचिन्तामणि:] शुद्ध ज्ञानमात्र ऐसा अनुभव चिन्तामणि रत्न है। [ एव] इस बातको निश्चय जानना, धोखा कुछ नहीं है। भावार्थ इस प्रकार है कि जिस प्रकार किसी पुण्यवान जीवके हाथमें चिन्तामणिरत्न होता है, उससे सब मनोरथ पूरा होता है, वह जीव लोहा, तांबा, रूपा ऐसी धातुका संग्रह करता नहीं उसी प्रकार सम्यग्दष्टि जीवके पास शद्धस्वरूप-अनभव ऐसा चिन्तामणिरत्न है. उसके द्वारा सकल है। परमात्मपदकी प्राप्ति होती है। अतीन्द्रिय सुखकी प्राप्ति होती है। वह सम्यग्दृष्टि जीव शुभअशुभरूप अनेक क्रियाविकल्प का संग्रह करता नहीं, कारण कि इनसे कार्यसिद्धि नहीं होती। और कैसा है ? 'अचिन्त्यशक्ति:'' वचनगोचर नहीं है महिमा जिसकी ऐसा है। और कैसा है ? "देवः'' परम पूज्य है।। १२-१४४ ।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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