________________
१९४
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
समयसार - कलश
[ अनुष्टुप ] भावयेद्भेदविज्ञानमिदमच्छिन्नधारया। तावद्यावत्पराच्च्युत्वा ज्ञानं ज्ञाने प्रतिष्ठते ।। ६-१३० ।।
[ रोला ]
अरे भव्यजन ! सच्चे मन से बिन जबतक परसे हो थिर न हो जाय अधिक क्या कहें जिनेश्वर । । १३० ।।
भव्यभावना भेदज्ञान की । विराम के तबतक भाना ।। विरक्त यह ज्ञान ज्ञान में ।
66
खंडान्वय सहित अर्थ:- ‘इदम् भेदविज्ञानम् तावत् अच्छिन्नधारया भावयेत्'' [ इदम् भेदविज्ञानम् ] पूर्वोक्तलक्षण है जो शुद्ध स्वरूपका अनुभव उसका [तावत्] उतने काल तक [ अच्छिन्नधारया ] अखण्डित धाराप्रवाहरूपसे [ भावयेत् ] आस्वाद करे। " 'यावत् परात् च्युत्वा ज्ञानं ज्ञाने प्रतिष्ठते '' [ यावत् ] जितने कालमें [ परात् च्युत्वा ] परसे छूटकर [ ज्ञानं ] आत्मा [ ज्ञाने ] शुद्धस्वरूपमें [ प्रतिष्ठते ] एकरूप परिणमे । भावार्थ इस प्रकार है निरंतर शुद्धस्वरूपका अनुभव कर्तव्य है। जिस काल सकल कर्मक्षयलक्षण मोक्ष होगा उस काल समस्त विकल्प सहज ही छूट जायेंगे। वहाँ भेदविज्ञान भी एक विकल्परूप है, केवलज्ञानके समान जीवका शुद्धस्वरूप नहीं है, इसलिए सहज ही विनाशीक है ।। ६-१३० ।।
[ अनुष्टुप ]
भेदविज्ञानतः सिद्धाः सिद्धा ये किल केचन ।
अस्यैवाभावतो बद्धा बद्धा ये किल केचन ।। ७-१३१ ।।
[ रोला ]
अबतक जो भी हुए सिद्ध या आगे होंगे। महिमा जानों एक मात्र सब भेदज्ञान की ॥
और जीव जो भटक रहे हैं भवसागर में ।
भेदज्ञान के ही अभाव से भटक रहे हैं ।। १३१ ।
[ भगवान् श्री कुन्दकुन्द -
"
खंडान्वय सहित अर्थ:- "ये किल केचन सिद्धाः ते भेदविज्ञानत: सिद्धा: '' [ ये ] आसन्न भव्यजीव है जो कोई [ किल ] निश्चयसे [ केचन ] संसारी जीवराशिमेंसे जो कोई गिनतीके [ सिद्धा: ] सकल कर्मों का क्षय कर निर्वाणपदको प्राप्त हुए [ते] वे समस्त जीव [ भेदविज्ञानतः ] सकल परद्रव्यों से भिन्न शुद्धस्वरूपके अनुभवसे [ सिद्धा: ] मोक्षपदको प्राप्त हुए । भावार्थ इस प्रकार है मोक्षका मार्ग शुद्धस्वरूपका अनुभव, अनादि संसिद्ध यही एक मोक्षमार्ग है । " ये केचन बद्धाः ते किल अस्य एव अभावत: बद्धा: ' [ ये केचन ] जो कोई [ बद्धा: ] ज्ञानावरणादि कर्मोंसे बँधे हैं [ ते ] वे समस्त जीव [ किल ] निश्चयसे [ अस्य एव ] ऐसा जो भेदविज्ञान, उसके [ अभावतः] नहीं होनेसे [ बद्धा: ] बद्ध होकर संसारमें रुल रहे हैं। भावार्थ इस प्रकार है - भेदज्ञान सर्वथा उपादेय है।। ७–१३१।।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
-