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कहान जैन शास्त्रमाला]
पुण्य-पाप-अधिकार
भावार्थ इस प्रकार है-- जिस प्रकार कर्मके उदयमें शरीर विद्यमान है पर हेयरूप जानते हैं उसी प्रकार अनेक प्रकारकी क्रियायें विद्यमान हैं पर हेयरूप जानते हैं। [प्रमादस्य वशं जातु न यान्ति] क्रिया तो कुछ नहीं ऐसा जानकर विषयी असंयमी भी कदाचित् नहीं होते, क्यों कि असंयमका कारण तीव्र संक्लेश परिणाम हैं सो तो संक्लेश मूल ही से गया है। ऐसे जो सम्यग्दृष्टि जीव वे जीव तत्काल मात्र मोक्षपदको पाते हैं।। १२–१११ ।।
[मन्दाक्रान्ता] भेदोन्मादं भ्रमरसभरान्नाटयत्पीतमोहं मूलोन्मूलं सकलमपि तत्कर्म कृत्वा बलेन। हेलोन्मीलत्परमकलया सार्धमारब्धकेलि ज्ञानज्योतिः कवलिततमः प्रोजुजृम्भे भरेण।। १३-११२।।
[हरिगीत] जग शुभ अशुभ में भेद माने मोह मदिरा पान से । पर भेद इनमें है नहीं जाना है सम्यक ज्ञान से ।। यह ज्ञान ज्योति तम विरोधी खेले केवलज्ञान से । जयवंत हो इस जगत में जगमगे आतमज्ञान से।।११२ ।।
खंडान्वय सहित अर्थ:- "ज्ञानज्योतिः भरेण प्रोजजृम्भे'' [ ज्ञानज्योति:] शुद्ध स्वरूपका प्रकाश [भरेण] अपनी संपूर्ण सामर्थ्य के द्वारा [प्रोजजृम्भे] प्रगट हुआ। कैसा हैं ? "हेलोन्मीलत्परमकलया सार्धम् आरब्धकेलि'' [ हेला] सहजरूपसे [उन्मीलत्] प्रगट हुए [ परमकलया] निरंतरपने अतीन्द्रिय सुखप्रवाहके [ सार्धम् ] साथ [ आरब्धकेलि] प्राप्त किया है परिणमन जिसने, ऐसा है। और कैसा हैं ? "कवलिततमः'' [ कवलित] दूर किया है [तमः] मिथ्यात्व अंधकार जिसने, ऐसा है। ऐसा जिस प्रकार हुआ है उस प्रकार कहते हैं-"तत्कर्म सकलम् अपि बलेन मूलोन्मूलं कृत्वा'' [ तत् ] कही है अनेक प्रकार [ कर्म] भावरूप अथवा द्रव्यरूप क्रिया [ सकलम् अपि] पापरूप अथवा पुण्यरूप [बलेन] बलजोरीसे [ मूलोन्मूलं कृत्वा] जितनी क्रिया है वह सब मोक्षमार्ग नहीं है ऐसा जान समस्त क्रियामें ममत्वका त्याग कर शुद्ध ज्ञान मोक्षमार्ग है ऐसा सिद्धान्त सिद्ध हुआ। कैसा है कर्म ? "भेदोन्मादं'' [भेद] शुभ क्रिया मोक्षमार्ग ऐसा पक्षपातरूप विहरा [अन्तर] उससे [ उन्मादं ] हुआ है गहिलपना जिसमें, ऐसा है। और कैसा है ? " पीतमोहं'' [पीत] निगला है [ मोहं] विपरीतपना जिसने, ऐसा है। जैसे कोई धतूरा का पानकर गहिल होता है ऐसा है जो पुण्यकर्मको भला मानता है। और कैसा है ? 'भ्रमरसभरात् नाटयत्'' [भ्रम ] धोखा, उसका [ रस] अमल, उसका [भरात्] अत्यन्त चढ़ना, उससे [नाटयत् ] नाचता है।
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