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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ८८ समयसार-कलश [भगवान् श्री कुन्द-कुन्द [शिखरिणी] यदेतद् ज्ञानात्मा ध्रुवमचलमाभाति भवनं शिवस्यायं हेतुः स्वयमपि यतस्तच्छिव इति। अतोऽन्यद्वन्धस्य स्वयमपि यतो बन्ध इति तत् ततो ज्ञानात्मत्वं भवनमनुभूतिर्हि विहितम्।। ६-१०५।। [रोला] ज्ञानरूप ध्रुव अचल आतमा का ही अनुभव। मोक्षरूप है स्वयं अतः वह मोक्ष हेतु है।। शेष भाव सब बंधरूप हैं बंध हेतु हैं। इसीलिए तो अनुभव करने काविधान है।।१०५।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "यत् एतत् ज्ञानात्मा भवनम् ध्रुवम् अचलम् आभाति अयं शिवस्य हेतुः'' [ यत् एतत् ] जो कोई [ज्ञानात्मा] चेतनालक्षण ऐसा [ भवनम् ] सत्त्वस्वरूप वस्तु [ध्रुवम् अचलम् ] निश्चयसे स्थिर होकर [ आभाति] प्रत्यक्षरूपसे स्वरूपका आस्वादक कहा है [अयं] यही [ शिवस्य हेतुः] मोक्षका मार्ग है। किस कारणसे ? “यतः स्वयम् अपि तत् शिवः इति'' [यतः] जिस कारण [स्वयम् अपि] अपने आप भी [ तत् शिवः इति] मोक्षरूप है। भावार्थ इस प्रकार है - जीवका स्वरूप सदा कर्मसे मुक्त है। उसको अनुभवने पर मोक्ष होता है ऐसा घटता है, विरुद्ध तो नहीं। "अतः अन्यत् बन्धस्य हेतु:'' [अतः] शुद्धस्वरूपका अनुभव मोक्षमार्ग है, इसके बिना [अन्यत् ] जो कुछ है शुभ क्रियारूप अशुभ क्रियारूप अनेक प्रकार [ बन्धस्य हेतु: ] वह सब बन्धका मार्ग है। "यतः स्वयम् अपि बन्ध: इति'' [यतः] जिस कारण [स्वयम् अपि] अपने आप भी [बन्धः इति] सर्व ही बन्धरूप है। "ततः तत् ज्ञानात्मा स्वं भवनम् विहितं हि अनुभूतिः'' [ततः] तिस कारण [ तत्] पूर्वोक्त [ ज्ञानात्मा] चेतनालक्षण, ऐसा है [स्वं भवनम् ] अपना जीवका सत्त्व [विहितम्] मोक्षमार्ग है, [हि] निश्चयसे [अनुभूतिः] प्रत्यक्षपने आस्वाद किया होता हुआ।। ६–१०५।। [अनुष्टुप] वृत्तं ज्ञानस्वभावेन ज्ञानस्य भवनं सदा। एकद्रव्यस्वभावत्वान्मोक्षहेतुस्तदेव तत्।। ७-१०६ ।। [दोहा] ज्ञानभाव का परिणमन ज्ञानभावमय होय। एकद्रव्यस्वभाव यह हेतु मुक्ति का होय।।१०६ ।। खंडान्वय सहित अर्थः- "ज्ञानस्वभावेन वृत्तं तत् तत् मोक्षहेतुः एव'' [ ज्ञान ] शुद्ध वस्तुमात्र, उसकी [ स्वभावेन ] स्वरूपनिष्पत्ति , उससे जो [ वृत्तं] स्वरूपाचरणचारित्र [ तत् तत् मोक्षहेतु: ] वही वही मोक्षमार्ग है। [ एव ] इस बातमें संदेह नहीं। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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