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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार-कलश [ भगवान् श्री कुन्द-कुन्द ऐसा जो कहा कि कर्म एकरूप है, उसके प्रति दृष्टान्त कहते हैं-- [मंदाक्रान्ता] एको दूरात्त्यजति मदिरां ब्राह्मणत्वाभिमानादन्यः शूद्रः स्वयमहमिति नाति नित्यं तयैव। द्वावप्येतौ युगपदुदरान्निर्गतौ शूद्रिकायाः शूद्रौ साक्षादपि च चरतो जातिभेदभ्रमेण।। २-१०१।। [रोला] दोनों जन्मे एक साथ शुद्रा के घर में । एक पला बामन के घर दूजा निज घर में ।। एक छुए ना मद्य ब्राह्मणत्वाभिमान से । दूजा डुबा रहे उसी में शूद्र भाव से ।। जातिभेद के भ्रम से ही यह अन्तर आया । इस कारण अज्ञानी ने पहिचान न पाया ।। पुण्य-पाप भी कर्म जाति के जुड़वा भाई । दोनों ही हैं हेय मुक्ति मारग में भाई ।।१०१ ।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "द्वौ अपि एतौ साक्षात् शूद्रौ'' [द्वौ अपि] विद्यमान दोनों [ एतौ] ऐसे हैं -[ साक्षात् ] निःसंदेहपने [ शूद्रौ] दोनो चण्डाल हैं। कैसा होनेसे ? ''शूद्रिकायाः उदरात युगपत् निर्गतौ'' जिस कारणसे [ शूद्रिकायाः उदरात्] चाण्डालीके पेटसे [युगपत् निर्गतौ] एक ही बार जन्मे हैं। भावार्थ इस प्रकार है -किसी चाण्डालीने युगल दो पुत्रोंको एक ही बार जन्मा। कर्मके योगसे एक पुत्र ब्राह्मणका प्रतिपाल हुआ सो तो ब्राह्मणकी क्रिया करने लगा। दूसरा पुत्र चाण्डालीका प्रतिपालित हुआ, सो तो चाण्डालकी क्रिया करने लगा। अब जो दोनोंके वंशनी उत्पत्ति विचारिये तो दोनों चाण्डाल हैं। उसी प्रकार कोई जीव दया, व्रत, शील, संयममें मग्न है, उनके शुभकर्म बंध भी होता है। कोई जीव हिंसा विषय कषायमें मग्न है, उनके पापबंध भी होता है। सो दोनों अपनी अपनी क्रियामें मग्न हैं। मिथ्यादृष्टिसे ऐसा मानते हैं कि शुभकर्म भला, अशुभकर्म बुरा। सो ऐसे दोनों जीव मिथ्यादृष्टि हैं, दोनों जीव कर्मबंधकरणशील हैं। कैसे हैं वे ? 'अथ च जातिभेदभ्रमेण चरतः'' [अथ च ] दोनों चाण्डाल हैं तो भी [ जातिभेद ] ब्राह्मण शूद्र ऐसा वर्णभेद उस रूप है [भ्रमेण] परमार्थशून्य अभिमानमात्र, उस रूपसे [चरतः] प्रवर्तते हैं। कैसा है जातिभेदभ्रम ? "एक: मदिरां दूरात् त्यजति'' [एक: ] चाण्डालीके पेटसे उपजा है पर प्रतिपाल ब्राह्मणके घर हुआ है ऐसा जो है वह [ मदिरां] सुरापानको [ दूरात त्यजति ] अत्यंत त्याग करता है, छूता भी नही है, नाम भी नहीं लेता है ऐसा विरक्त है। किस कारण से ? ''ब्राह्मणत्वाभिमानात'' [ ब्राह्मणत्व ] 'अहं ब्राह्मणः' ऐसा संस्कार. उसका [ अभिमानात] पक्षपातसे। भावार्थ इस प्रकार है - शूद्रीके पेटसे उपजा हूँ ऐसे मर्मको नहीं जानता है। 'मैं ब्राह्मण, मेरे कुलमें मदिरा निषिद्ध है' ऐसा जानकर मदिराको छोड़ा है, सो भी विचार करनेपर चाण्डाल है। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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