________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
कहानजैनशास्त्रमाला]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
[४७
अत्र सामान्येनोक्तलक्षणानां षण्णां द्रव्याणां मध्यात्पश्चानामस्तिकायत्वं व्यवस्थापितम्।
अकृतत्वात् अस्तित्वमयत्वात् विचित्रात्मपरिणतिरूपस्य लोकस्य कारणत्वाच्चाभ्युपगम्यमानेषु षट्सु दव्येषु जीवपुद्गलाकाशधर्माधर्माः प्रदेशप्रचयात्मकत्वात् पञ्चास्तिकायाः। न खलु कालस्तदभावादस्तिकाय इति सामर्थ्यादवसीयत इति।।२२।।
सब्भावसभावाणं जीवाणं तह य पोग्गलाणं च। परियट्टणसंभूदो कालो णियमेण पण्णत्तो।।२३।।
सद्भावस्वभावानां जीवानां तथैव पुद्गलानां च। परिवर्तनसम्भूतः कालो नियमेन प्रज्ञप्त।।२३।।
अत्रासितकायत्वेनानुक्तस्यापि कालस्यार्थापन्नत्वं द्योतितम्।
-----------------------------------------------------------------------------
अकृत होनेसे, अस्तित्वमय होनेसे और अनेक प्रकारकी अपनी परिणतिरूप लोकके कारण होनेसे जो स्वीकार [-सम्मत] किये गये हैं ऐसे छह द्रव्योंमें जीव, पुद्गल, आकाश, धर्म और अधर्म प्रदेशप्रचयात्मक [-प्रदेशोंके समूहमय] होनेसे वे पाँच अस्तिकाय हैं। कालको प्रदेशप्रचयात्मकपनेका अभाव होनेसे वास्तवमें अस्तिकाय नहीं हैं ऐसा [ बिना-कथन किये भी] सामर्थ्यसे निश्चित होता है।। २२।।
गाथा २३
अन्वयार्थ:- [ सद्भावस्वभावानाम् ] सत्तास्वभाववाले [जीवानाम् तथा एव पुद्गलानाम् च] जीव और पुद्गलोंके [ परिवर्तनसम्भूतः ] परिवर्तनसे सिद्ध होने वाले [ काल: ] ऐसा काल [नियमेन प्रज्ञप्तः ] [ सर्वज्ञों द्वारा ] नियमसे [ निश्चयसे] उपदेश दिया गया है।
टीका:- काल अस्तिकायरूपसे अनुक्त [-नहीं कहा गया ] होने पर भी उसे अर्थपना [ पदार्थपना] सिद्ध होता है ऐसा यहाँ दर्शाया है।
१। लोक छह द्रव्योंके अनेकविध परिणामरूप [-उत्पादव्ययध्रौव्यरूप] है; इसलिये छह द्रव्य सचमुच लोकके कारण हैं।
सत्तास्वभावी जीव ने पुद्गल तणा परिणमनथी छे सिद्धि जेनी, काल ते भाख्यो जिणंदे नियमथी । २३ ।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com