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विषय गाथा | विषय
गाथा स्वचारित्रमें प्रवर्तन करनेवालेका
| स्वसमयकी उपलब्धिमें राग ही एक हेतु | १६७ स्वरूप
| १५८ | रागलवमूलक दोषपरम्पराका निरूपण १६८ | शुद्ध स्वचारित्रप्रवृत्तिका मार्ग
१५९ । रागरूप क्लेशका निःशेष नाश करनेनिश्चयमोक्षमार्गके साधनरूपसे.
योग्य होनेका निरूपण पूर्वोदिष्ट व्यवहारमोक्षमार्गका निर्देश | १६० अर्हतादिकी भक्तिरूप परसमयव्यवहारमोक्षमार्गके साध्यरूपसे,
प्रवृत्तिमें साक्षात मोक्षहेतुपनेका निश्चयमोक्षमार्गका कथन
| १६१ अभाव होनेपर भी परम्परासे | आत्माके चारित्र-ज्ञान-दर्शनपनेका
मोक्षहेतुपनेका सद्भाव
१७० प्रकाशन
१६२ | मात्र अर्हतादिकी भक्ति जितने रागसे | सर्व संसारी आत्मा मोक्षमार्गके योग्य
उत्पन्न होनेवाला साक्षात मोक्षका होनेका निराकरण | १६३ अंतराय
१७१ दर्शन-ज्ञान चारित्रका कथंचित
साक्षात मोक्षमार्गके सार-सूचन द्वारा बंधहेतुपना और जीवस्वभावमें शास्त्रतात्पर्यरूप उपसंहार
१७२ | नियत
चारित्रका साक्षात मोक्षहेतपना १६४ | शास्त्रकर्ताकी प्रतिज्ञाक सूक्ष्म परसमयका स्वरूप
१६५ करनेवाली समाप्ति | शुद्धसम्प्रयोगको कथंचित बंधहेतुपना।
होनेसे उसे मोक्षमार्गपनेका निषेध । १६६
१७३
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