SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates विषय गाथा | विषय गाथा स्वचारित्रमें प्रवर्तन करनेवालेका | स्वसमयकी उपलब्धिमें राग ही एक हेतु | १६७ स्वरूप | १५८ | रागलवमूलक दोषपरम्पराका निरूपण १६८ | शुद्ध स्वचारित्रप्रवृत्तिका मार्ग १५९ । रागरूप क्लेशका निःशेष नाश करनेनिश्चयमोक्षमार्गके साधनरूपसे. योग्य होनेका निरूपण पूर्वोदिष्ट व्यवहारमोक्षमार्गका निर्देश | १६० अर्हतादिकी भक्तिरूप परसमयव्यवहारमोक्षमार्गके साध्यरूपसे, प्रवृत्तिमें साक्षात मोक्षहेतुपनेका निश्चयमोक्षमार्गका कथन | १६१ अभाव होनेपर भी परम्परासे | आत्माके चारित्र-ज्ञान-दर्शनपनेका मोक्षहेतुपनेका सद्भाव १७० प्रकाशन १६२ | मात्र अर्हतादिकी भक्ति जितने रागसे | सर्व संसारी आत्मा मोक्षमार्गके योग्य उत्पन्न होनेवाला साक्षात मोक्षका होनेका निराकरण | १६३ अंतराय १७१ दर्शन-ज्ञान चारित्रका कथंचित साक्षात मोक्षमार्गके सार-सूचन द्वारा बंधहेतुपना और जीवस्वभावमें शास्त्रतात्पर्यरूप उपसंहार १७२ | नियत चारित्रका साक्षात मोक्षहेतपना १६४ | शास्त्रकर्ताकी प्रतिज्ञाक सूक्ष्म परसमयका स्वरूप १६५ करनेवाली समाप्ति | शुद्धसम्प्रयोगको कथंचित बंधहेतुपना। होनेसे उसे मोक्षमार्गपनेका निषेध । १६६ १७३ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy