________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
कहानजैनशास्त्रमाला]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
[९७
यथा हि जलराशेर्जलराशित्वेनासदुत्पादं सदुच्छेदं चाननुभवतश्चतुर्यः ककुब्विभागेभ्यः क्रमेण वहमानाः पवमाना: कल्लोलानामसदुत्पादं सदुच्छेदं च कुर्वन्ति, तथा जीवस्यापि जीवत्वेन सदुच्छेदमसदुत्पत्तिं चाननुभवत: क्रमेणोदीयमानाः नारकतिर्यङ्मनुष्यदेवनामप्रकृतयः सदुच्छेदमसदुत्पादं च कुर्वंतीति।। ५५।।
उदयेण उवसमेण य खयेण दुहिं मिस्सिदेहिं परिणामे। जुत्ता ते जीवगुणा बहुसु य अत्थेसु विच्छिण्णा।। ५६ ।।
उदयेनोपशमेन च क्षयेण द्वाभ्यां मिश्रिताभ्यां परिणामेन। युक्तास्ते जीवगुणा बहुषु चार्थेषु विस्तीर्णाः।। ५६ ।।
टीकाः- जीवको सत् भावके उच्छेद और असत् भावके उत्पादमें निमित्तभूत उपाधिका यह प्रतिपादन है।
जिस प्रकार समुद्ररूपसे असत्के उत्पाद और सत्के उच्छेदका अनुभव न करनेवाले ऐसे समुद्रको चारों दिशाओंमेंसे क्रमशः बहती हुई हवाएँ कल्लोलोंसम्बन्धी असत्का उत्पाद और सत्का उच्छेद करती हैं [अर्थात् अविद्यमान तरंगके उत्पादमें और विद्यमान तरंगके नाशमें निमित्त बनती है], उसी प्रकार जीवरूपसे सत्के उच्छेद और असत्के उत्पाद अनुभव न करनेवाले ऐसे जीवको क्रमशः उदयको प्राप्त होने वाली नारक-तिर्यंच-मनष्य-देव नामकी [नामकर्मकी] प्रकतियाँ [ भावोंसम्बन्धी, पर्यायोंसम्बन्धी ] सत्का उच्छेद तथा असत्का उत्पाद करती हैं [अर्थात् विद्यमान पर्यायके नाशमें और अविद्यमान पर्यायके उत्पादमें निमित्त बनती हैं]।। ५५ ।।
गाथा ५६
अन्वयार्थ:- [ उदयेन] उदयसे युक्त, [ उपशमेन ] उपशमसे युक्त, [क्षयेण] क्षयसे युक्त, [द्वाभ्यां मिश्रिताभ्यां ] क्षयोपशमसे युक्त [च ] और [ परिणामेन युक्ताः ] परिणामसे युक्त-[ ते] ऐसे [ जीवगुणाः ] [ पाँच ] जीवगुण [-जीवके भाव ] हैं; [च ] और [ बहुषु अर्थेषु विस्तीर्णाः ] उन्हें अनेक प्रकारोंमें विस्तृत किया जाता है।
परिणाम, उदय,क्षयोपशम , उपशम, क्षये संयुक्त जे, ते पांच जीवगुण जाणवा; बहु भेदमां विस्तीर्ण छ। ५६ ।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com