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सम्पादकीय 'योगसार-प्राभृत शतक' पाठकों के करकमलों में देते हुए विशेष हर्ष हो रहा है। योगसार-प्राभृत आचार्य अमितगति द्वारा ५४० श्लोकों में निबद्ध आध्यात्मिक कृति है। इस पर आचार्य कुन्दकुन्द के पंचपरमागमों का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है।
आज के इस वैज्ञानिक युग में टेलीफोन, मोबाइल, फैक्स, ई-मेल, रेडियो, टी.वी., हवाई जहाज आदि साधनों के कारण दुनिया तो बहुत छोटी हो गई है; लेकिन इसी के साथ भौतिक समृद्धि की होड़ में लोगों के पास समय की भी बहुत कमी होती जा रही है। इसीकारण आचार्यों के बड़े-बड़े मूलग्रन्थों को समग्र पढ़ने का समय ही नहीं मिल पाता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए योगसार-प्राभृत' मूलग्रन्थ के ५४० श्लोकों में से मात्र धर्म के वास्तविक स्वरूप को समझने व प्रगट करने में उपयोगी विषयवाले १०१ श्लोकों का चयन कर इस पुस्तक में संकलित किया है।
इस शतक को डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल कृत हिन्दी पद्यानुवाद के साथ ही प्रकाशित करने का विचार था और अभी भी है, लेकिन डॉ. भारिल्ल अभी प्रवचनसार-अनुशीलन के लेखन में व्यस्त होने से संभव नहीं हो पाया है। मात्र यह शतक ही नहीं, अपितु पूर्ण ग्रंथ ही उनके हिन्दी पद्यानुवाद सहित पाठकों के हाथ में शीघ्र ही देने की भावना है।
आशा है पाठकों को इस शतक के माध्यम से मूलग्रंथ के स्वाध्याय व आचार्य कुन्दकुन्द के पंचपरमागमों के अध्ययन की रुचि जागृत होगी।
प्रकाशकीय पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट एवं पताशे प्रकाशन संस्था घटप्रभा के माध्यम से 'योगसारप्राभृत-शतक' का प्रकाशन करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।
आचार्य अमितगति विरचित 'योगसार-प्राभृत' जैसे आध्यात्मिक ग्रंथ का प्रकाशन अभी हाल ही में पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट द्वारा किया गया, जिसका समाज में समुचित समादर हुआ है और पर्याप्त बिक्री हुई। पाठकों की भावना थी कि इसे लघुरूप में भी प्रकाशित किया जाए, ताकि अल्पसमय में इसका स्वाध्याय किया जा सके।
पाठकों के सुझाव को दृष्टिगत रखते हुए मूल ग्रंथ की विषयवस्तु को समग्र रूप से इस लघु पुस्तिका में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। इस कार्य में ब्र, यशपाल जैन का विशेष योगदान रहा है और जिसप्रकार रुचिपूर्वक वे प्रकाशन के कार्य में रत हैं, इससे संस्था को बल मिला है। उनका मार्गदर्शन व अनुकरणीय सहयोग के लिए संस्था उनकी हृदय से आभारी है।
प्रस्तुत पुस्तिका का कम्पोजिंग कार्य श्री दिनेश शास्त्री द्वारा मनोयोगपूर्वक किया गया है, संस्था की ओर से उन्हें हार्दिक धन्यवाद । प्रकाशन व्यवस्था सदा की भाँति प्रकाशन विभाग के मैनेजर श्री अखिल बंसल ने सम्हाली है। आवरण को नयनाभिराम बनाने में इनका सराहनीय सहयोग रहा है; एतदर्थ हम इनके भी हृदय से आभारी हैं। प्रकाशन को अति अल्प मूल्य में पहँचाने का श्रेय दान-दातारों को है, जिनकी सची पथक से प्रकाशित की गई है। सभी सहयोगियों को कोटिशः धन्यवाद ।
आप सभी इस कृति का स्वाध्याय कर, इसके हार्द को समझें - इसी आशा और विश्वास के साथ - श्रीमती इन्दुमति अण्णासाहेब खेमलापुरे
डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल पताशे प्रकाशन संस्था, घटप्रभा पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर
अध्यक्षा
महामंत्री
- ब्र. यशपाल जैन