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अजीव अधिकार
प्रश्न – अति सूक्ष्म निगोदिया आदि जीवों के प्रदेश असंख्यात कैसे हो सकते हैं?
उत्तर - मगरमच्छ एवं हाथी आदि महाकाय अथवा केवली समदघात करनेवाले जीवों के प्रदेश ही असंख्यात हो सकते हैं, अन्य सूक्ष्म संसारी जीवों के नहीं; ऐसा नहीं समझना चाहिए। सूक्ष्मातिसूक्ष्म निगोदिया जीव भी अपने शरीर द्वारा आकाश के असंख्यात प्रदेशों को ही घेरता है। एक प्रदेश कितना सूक्ष्म है, यह हम नहीं जानते, इसलिए ऐसा भ्रम उत्पन्न होता है। तत्त्वार्थसूत्र अध्याय ५ के ७ तथा ११ वें सूत्रों में यह विषय आया है। परमाणु का लक्षण -
द्रव्यमात्मादिमध्यान्तमविभागमतीन्द्रियम्।
अविनाश्यग्निशस्त्राद्यैः परमाणुरुदाहृतम् ।।६९।। अन्वय :- आत्मा-आदि-मध्य-अन्तं, अविभागं, अतीन्द्रियं, अग्नि-शस्त्राद्यैः अविनाशि द्रव्यं परमाणुः उदाहृतम् ।
सरलार्थ :- जो स्वयं आदि, मध्य और अन्तरूप है अर्थात् जिसका आदि, मध्य और अन्त एक-दूसरे से भिन्न नहीं हैं; जिसका विभाजन खण्ड अथवा अंशविकल्प नहीं हो सकता; जो इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य नहीं है और जो अग्नि-शस्त्र आदि से नाश को प्राप्त नहीं हो सकता - ऐसा पुद्गलरूप द्रव्य परमाणु कहा गया है।
भावार्थ :- इसी अर्थ को व्यक्त करनेवाली नियमसार की गाथा २६ को अवश्य देखिए। आकाश एवं पुद्गल द्रव्यों के प्रदेशों की संख्या -
प्रदेशा नभसोऽ नन्ता अनन्तानन्तमानकाः।
पुद्गलानां जिनैरुक्ताः परमाणुरनंशकः ।।७।। अन्वय :- जिनैः नभसः अनन्ता: पुद्गलानां अनंतानंत-मानकाः प्रदेशा: उक्ताः, परमाणुः अनंशकः। __ सरलार्थ :- जिनेन्द्र देव ने आकाश द्रव्य के अनंत और पुद्गल द्रव्यों के अनन्तानन्त प्रदेश कहे हैं। उसीतरह पुद्गल परमाणु को अप्रदेशी अर्थात् एक प्रदेशी कहा है।
भावार्थ :- आकाश द्रव्य लोक एवं अलोक में व्याप्त रहता है, इसलिए आकाश के प्रदेश अनंत हैं; ऐसा स्वीकार करने में किसे भी कोई आपत्ति नहीं होती; परंतु पुद्गल के संबंध में शंका उपस्थित होती है कि असंख्यात-प्रदेशी लोकाकाश में अनंतानंत प्रदेशी पुद्गल द्रव्य का रहना कैसे सम्भव है?
उसका समाधान - पुद्गल द्रव्य अनंतानंतप्रदेशी होने पर भी असंख्यात प्रदेशी लोकाकाश में ही रहता है, इसके दो कारण हैं - प्रथम तो आकाश के एक प्रदेश में एक परमाणु को, संख्यात परमाणुओं को, असंख्यात परमाणुओं को एवं अनंत परमाणुओं को भी स्थान अर्थात् अवगाह देने की सामर्थ्य है।
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