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योगसार-प्राभृत
सरलार्थ :- जिसप्रकार (कुंभकार का निमित्त पाकर) जड़ मिट्टी ही स्वयं घटादि को उत्पन्न करती है; अर्थात् घटादि की कर्ता मिट्टी है, कुंभकार नहीं। उसीप्रकार चेतना का निमित्त पाकर कर्म, क्रोध-मान-माया-लोभादिरूप समस्त कषाय परिणाम उत्पन्न करते हैं।
भावार्थ :- उदाहरण में जिसप्रकार मिट्टी ही घटादि की कर्ता है, उसीप्रकार क्रोधादि कषाय का कर्ता जड़ मोहनीय कर्म है। कषाय परिणामों का स्वरूप -
आत्मनो ये परीणामाः मलतः सन्ति कश्मलाः।
सलिलस्येव कल्लोलास्ते कषाया निवेदिताः ।।४९६।। अन्वय : - आत्मनः ये परीणामाः मलत: कश्मलाः सन्ति ते (परीणामाः) सलिलस्य कल्लोलाः इव कषायाः निवेदिताः।।
सरलार्थ :- आत्मा के जो परिणाम कर्मरूपी मल के निमित्त से मलीन/विभावरूप हो जाते हैं, वे परिणाम जल की कल्लोलों की तरह कषाय कहे गये हैं।
भावार्थ :- क्रोध, मान, माया, लोभ परिणामों को कषाय कहते हैं। वे जीव के मूल स्वभाव नहीं, जो स्वयमेव ही ज्ञान की तरह किसी निमित्त के बिना स्वभावरूप हों । कर्मरूप मल का निमित्त पाकर ही जीव के कषाय होते हैं, कर्मरूप मल के अभाव में कषाय नहीं होते । जल की कल्लोलें जैसे क्षणभंगुर/अस्थायी अर्थात् मात्र एक ही अंतर्मुहूर्त कालावधि पर्यंत टिकती हैं, उसीप्रकार विकार नियम से अस्थायी होता है और स्वभाव त्रैकालिक रहता है। विभाव दुःखरूप, दुःख का कारण तथा दुःखदायक होता है और स्वभाव सुखरूप, सुख का कारण एवं सुखदाता होता है। कालुष्य और कर्म में निमित्त-नैमित्तिक संबंध -
कालुष्याभावतोऽकर्म कालुष्यं कर्मतः पुनः ।
एकनाशे द्वयोर्नाशः स्याद् बीजाङ्करयोरिव ।।४९७।। अन्वय : - कर्मत: कालुष्यं (उत्पद्यते), पुन: कालुष्य-अभावत: (च) अकर्म (भवति)। बीज-अङ्करयोः इव एकनाशे (सति) द्वयोः नाश: स्यात् ।
सरलार्थ :- मोहनीय कर्म के उदय के निमित्त से जीव में क्रोधादिरूप कलुषता की उत्पत्ति होती है और क्रोधादिरूप कलुषता के अभाव से ज्ञानावरणादि कर्म का अभाव होता है। बीज और अंकुर की तरह दोनों में से किसी एक का नाश होने पर दोनों का एकसाथ नाश हो जाता है।
भावार्थ :- नये कर्मबंध में निमित्त मात्र मोह परिणाम ही है अर्थात् श्रद्धा की विपरीतता और चारित्र की विपरीतता ही बंधकारक भाव है । अन्य ज्ञानावरणादि कर्म के निमित्त से होनेवाला जीव का विभाव परिणाम कर्मबंध में बिलकल निमित्त नहीं है। इसलिए आस्रव और बंध के कारण तत्त्वार्थसूत्रादि सभी शास्त्रों में मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद और कषाय को ही बताया है। इन चारों परिणामों को एक शब्द में कहना हो तो मोह, दो शब्दों में कहना हो तो राग-द्वेष, तीन शब्दों में
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