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योगसार-प्राभृत
एकरूपता ही है। कुछ लोगों को जो मतभेद लगता है, वह उनके अज्ञान की महिमा है।
जिन्होंने सब जाना है, उनके तत्त्व-कथन में एकरूपता आना तो स्वाभाविक है । जो महापुरुष वीतरागी होते हैं, वे ही सर्वज्ञ हो जाते हैं। देशना के विभिन्नता का कारण -
विचित्रा देशनास्ततत्र भव्यचित्तानुरोधतः।
कुर्वन्ति सूरयो वैद्या यथाव्याध्यनुरोधतः ।।४५०।। अन्वय :- यथा व्याधि-अनुरोधतः वैद्या: विचित्रा: देशना: कुर्वन्ति (तथैव) सूरयः भव्यचित्तानुरोधतः तत्र (मोक्षमार्गे) सूरयः विचित्रा: देशनाः (कुर्वन्ति)।
सरलार्थ :- जिस समय जिस रोगी की जिसप्रकार की व्याधि/बीमारी होती है; उस समय चतुर वैद्य उस व्याधि तथा रोगी की प्रकृति आदि के अनुरूप योग्य भिन्न-भिन्न औषधि की योजना करते हैं; उसीप्रकार मुक्तिमार्ग के संबंध में भी आचार्य महोदय भव्य जीवों के चित्तानुरोध से नाना प्रकार की देशनाएँ देते हैं।
भावार्थ :- अरहंत सर्वज्ञ भगवंत की मूल देशना प्रथमानुयोग आदि चार अनुयोगों में निबद्ध है; इसका कारण देशना के योग्य भिन्न-भिन्न जीवों की पात्रता ही है। एक द्रव्यानुयोग में भी व्यवहारनय-निश्चयनय के कथन का कारण भी देशना योग्य भिन्न-भिन्न जीवों की पात्रता ही है। अनगारधर्म एवं सागारधर्म के भेद का कारण भी जीवों की विभिन्न पात्रता ही है। उपादानमूलक कथन तथा निमित्तमूलक कथन में भी जीवों की पात्रता ही कारण है। इस तरह देशना के भेद जिनवाणी में उपलब्ध होते हैं; तथापि मोक्षमार्ग तो एक वीतरागरूप ही है। इस वीतरागरूप मूल प्रयोजन को आचार्य कुंदकुंद ने पंचास्तिकाय संग्रह शास्त्र के गाथा १७२ में तथा आचार्य अमृतचंद्र ने इस गाथा की टीका में विस्तारपूर्वक स्पष्ट किया है। मुक्ति का कारण -
कारणं निर्वृतेरेतच्चारित्रं व्यवहारतः।
विविक्तचेतनध्यानं जायते परमार्थतः ।।४५१।। अन्वय :- एतत् (पूर्वोक्तं) चारित्रं व्यवहारत: निवृते: कारणं (अस्ति)। परमार्थतः (तु) विविक्त-चेतन-ध्यानं (निवृते: कारणं) जायते । ___ सरलार्थ :- इस चारित्र अधिकार में २८ मूलगुणों की मुख्यता से कहा हुआ चारित्र व्यवहारनय से निर्वाण/मुक्ति का कारण है। निश्चयनय से कर्मरूपी कलंक से रहित निज शुद्धात्मा का ध्यान ही निर्वाण का कारण है।
भावार्थ :- मुनिराज के जीवन में अनंतानुबंधी आदि तीन कषाय चौकड़ी के अभावपूर्वक व्यक्त वीतरागमय सुखरूप शुद्ध पर्याय ही निश्चय चारित्र है। वह निश्चय चारित्र शुद्धात्मा के निर्विकल्प ध्यान से ही प्रगट होता है।
[C:/PM65/smarakpm65/annaji/yogsar prabhat.p65/272]