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योगसार-प्राभृत
सरलार्थ :- जिसप्रकार दाद खुजानेवाले अज्ञानी मनुष्य दाद के खुजाने को अच्छा और सुखदायी समझते हैं; उसीप्रकार जो दुर्बुद्धि अर्थात् मिथ्यादृष्टि अथवा विपरीत बुद्धिधारक हैं, वे वास्तव में अकृत्य को कृत्य अर्थात् न करने योग्य कुकर्म को करने योग्य सुकर्म तथा कृत्य को अकृत्य अर्थात् करने योग्य सुकर्म को न करने योग्य कुकर्म और दुःख को सुख मानते हैं।
भावार्थ :- विपरीत मान्यता अर्थात् श्रद्धा को मिथ्यात्व कहते हैं । जैसा वस्तु-स्वरूप है उससे उल्टा मानना यह उसका अर्थ हुआ। इसलिए जो सत्य से विपरीत हो अर्थात् असत्य को सत्य समझने में मिथ्यादृष्टि को आनंद आता है। इसकारण मिथ्यादृष्टि नियम से दुःखी रहते हैं। तत्त्व-श्रवण से ध्यान -
क्षाराम्भस्त्यागतः क्षेत्रे मधुरोऽमृत-योगतः।
प्ररोहति यथा बीजं ध्यानं तत्त्वश्रुतेस्तथा ।।३५२।। अन्वय :- यथा क्षाराम्भस्त्यागत: अमृत-योगतः क्षेत्रे बीजं मधुरः प्ररोहति तथा तत्त्वश्रुतेः (योगत:) ध्यानं (प्ररोहति)।
सरलार्थ :- जिसप्रकार खारे जल के त्याग से और मीठे जल के संयोग से खेत में पड़ा हुआ बीज मधुर फल को उत्पन्न करता है; उसीप्रकार तत्त्व-श्रवण के संयोग से सम्यग्ध्यान उत्पन्न होता है।
भावार्थ :- अनादिकाल से संसार में प्रत्येक जीव सहज ही पर्याय में मिथ्यादृष्टि है और इस मिथ्यात्व के पोषण करने योग्य ही सर्वत्र वातावरण भी बना रहता है। इसलिए प्रथम कुश्रवण, कुसंगति आदि का बुद्धिपूर्वक त्याग करके सर्वज्ञ भगवान के उपदेश का श्रवण, मनन-चिंतन, चर्चा करनी चाहिए; जिससे अनादि का मिथ्या श्रद्धान स्वयमेव ढीला अर्थात् सूक्ष्म होते हुए नष्ट होकर सम्यक्त्व प्रगट होता है। ___ सबसे पहले शास्त्र के आधार से सर्वज्ञ के उपदेशानुसार अपने ज्ञान को यथार्थ बनाना आवश्यक है। तदनन्तर सम्यक्त्व और पुनः पुनः सम्यग्ज्ञान के संस्कार से ज्ञान निर्मल एवं पक्का होता है तथा धीरे-धीरे यही निर्मलज्ञान स्थिर होता है, इसे ध्यान कहते हैं। तत्त्व-श्रवण की प्रेरणा -
क्षाराम्भःसदृशी त्याज्या सर्वदा भोग-शेमुषी।
मधुराम्भोनिभा ग्राह्या यत्नात्तत्त्वश्रुतिर्बुधैः ।।३५३।। सरलार्थ :- खारे जल के समान दुःखरूप एवं दुःखदायक भोगबुद्धि - अर्थात् पाँचों इंद्रियों के स्पर्शादि भोग्य विषयों में सुख है, ऐसी मिथ्या/विपरीत श्रद्धा का त्याग करना चाहिए और सदा ग्राह्य मधुर जल के समान सर्वज्ञ कथित जीवादि सप्त तत्त्वों का श्रवण ध्यान की सिद्धि के लिये बुधजनों को करना चाहिए।
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