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ये तो सोचा ही नहीं व मन के द्वारा विकेन्द्रित ज्ञान किरणों को अन्तर्मुखी पुरुषार्थ से आत्मा पर केन्द्रित करता है। वह ज्ञान को केन्द्रित करने की प्रकिया ही धर्मध्यान है। आत्मज्ञान के बिना आत्मध्यान या धर्मध्यान संभव नहीं है और धर्मध्यान के बिना सच्चे ध्येय की प्राप्ति संभव नहीं है । ध्रुवधाम आत्मा के जानने का नाम सम्यग्ज्ञान है और उसे जानते रहने का नाम सम्यक्चारित्र है, निश्चय धर्मध्यान है - ऐसे ध्यान से ही आत्मा पूर्ण पवित्र होकर पूर्णता की प्राप्ति कर लेता है, कर्मबंधन से मुक्त हो जाता है।
जबतक पूर्व परम्परागत कर्ताबुद्धि से पर में किसी प्रकार से परिवर्तन करने/कराने की मान्यता या सोच रहेगा, तबतक मन की वृत्ति/प्रवृत्ति पर नियंत्रण संभव नहीं है। ये तो अब तक सोचा ही नहीं।"
शिविर के समापन के साथ 'ध्यान' विषय का उपसंहार करते हुए ज्ञानेशजी का जो भाषण हुआ, उससे सभी श्रोताओं के स्मृति-पटल पर चलचित्र के चित्रपट की भाँति सम्पूर्ण शिविर में चर्चित विषय प्रतिबिम्बित हो गया।
सभी श्रोताओं ने मन ही मन अपने ज्ञान-गुरु ज्ञानेशजी का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए और उनके स्वास्थ्य एवं दीर्घजीवन की मंगल कामना करते हुए अगले शिविर की सूचना के साथ अन्त में राष्ट्रीय गीत की ध्वनि प्रसारित की गई।
अध्यात्म रत्नाकर पण्डितश्री रतनचन्दजी भारिल्ल के
प्रति मुनिराजों के आशीर्वचन
बहुत-बहुत मंगल आशीर्वाद • राष्ट्रसंत आचार्य श्री विद्यानन्दजी महाराज
धर्मानुरागी विद्वान पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल वर्तमान जैनसमाज के उच्चकोटि के विद्वानों में से एक हैं। वर्तमान में वे जिसप्रकार एक दीपक से हजारों दीपक जलते हैं, एक बीजान्न से अनेक बीजान्न उत्पन्न होते हैं, उसीप्रकार अनेक विद्वानों को तैयार कर जिनवाणी की महान सेवा कर रहे हैं।
पण्डितजी एक सिद्धहस्त एवं आगमनिष्ठ लेखक भी हैं। उनका ज्ञान अत्यन्त प्रमाणिक है, जो उनकी प्रत्येक कृति में अभिव्यक्त हो रहा है, चाहे वह 'जिनपूजन रहस्य' हो, चाहे णमोकार महामंत्र' । मुझे उनकी किसी भी कृति में एक अक्षर भी आगमविरुद्ध लिखा नहीं मिला।
उनके सार्वजनिक अभिनन्दन के इस अवसर पर मेरा बहुत-बहुत मंगल आशीर्वाद है, वे स्वस्थ एवं दीर्घायु होकर विद्वानों को तैयार करते रहें और श्रेष्ठ साहित्य का सृजन करके साहित्य सेवा भी करते रहें।
अत्यन्त सरल स्वभावी विद्वान • आचार्यश्री धर्मभूषणजी महाराज
पण्डित रतनचन्द भारिल्ल अत्यन्त सरलस्वभावी व जिनागम के ज्ञाता विद्वान हैं। उन्होंने अत्यन्त सरल शब्दों में श्रावकाचार, जिनपूजन रहस्य जैसी अनेकों जैनधर्म की सामान्य परन्तु महत्वपूर्ण ज्ञानवर्द्धक पुस्तकों की रचना की है। अभी उन्होंने शलाकापुरुष एवं हरिवंशकथा जैसी प्रथमानुयोग की अनुपम पुस्तकों का भी सुन्दर लेखन किया है। पण्डित रतनचन्द भारिल्ल जैन समाज में इसीप्रकार जिनवाणी का प्रचार-प्रसार करते रहें - हमारा यही मंगल शुभ आशीर्वाद है।