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ग्यारह पति के स्थान की पूर्ति संभव नहीं नारी के जीवन में सबसे बड़ा दुःख उसके वैधव्य का होता है। इससे अधिक दुःखद स्थिति नारी के जीवन में अन्य कोई नहीं हो सकती। दुर्दैव से यदि यह दुःखद परिस्थिति विवाह के तुरन्त बाद ही बन जाये, तब तो मानो उस पर विपत्तियों के पहाड़ ही टूट पड़ते हैं। पति के अभाव में सारा जीवन अंधकारमय तो बन ही जाता है, साथ ही
और भी अनेक विपत्तियों की घनघोर घटायें घेर लेती हैं। पति के परिवार और पड़ौसियों का दुर्व्यवहार तथा पीहर की उपेक्षा उसे जीते जी नरक में धकेल देते हैं, उसका जीना ही दूभर कर देते हैं। ___ रूपश्री के ससुराल पक्ष से सहानुभूति और सहारा मिलने के बजाय सब ओर से हृदय-विदारक वाक्यावली ही सुनाई देने लगी। तानों के वचन-वाण उसके हृदय को बेधते ही रहते।
सासूजी कहती - "डायन है, डायन ! दुष्टा ने देहरी पर पाँव रखते ही खा लिया मेरे लाल को।"
हाँ में हाँ मिलाते पत्नी-भक्त श्वसुर साहब के मुँह से निकलता - "कुलक्षणी है कुलक्षणी। ज्योतिषीजी ने भी क्या देखकर संजोग बैठा दिया ? देखो न ! घर में पाँव पड़ते ही बेटा तो जीवन से हाथ धो ही बैठा, मार्केट की भी क्या हालत हो गई ? लाखों की चोट लग गई धंधे
पति के स्थान की पूर्ति संभव नहीं, पर.... __अंधविश्वासी जेठजी उस बालक को डाँटते हुए बोले - “अब ये छोकरा हमें बिजनिस करना सिखायेगा। "अरे ! यह जो भी हआ सो तो हुआ ही, इस कुलक्षणा के पदार्पण से मेरा तो हाल ही बेहाल हो गया। हत्या के अपराध में चल रहे फौजदारी मुकदमे में मैं सुप्रीम कोर्ट से भी हार गया है। अब आजीवन कारावास तो पक्का ही समझो। फाँसी की सजा भी हो सकती है।"
वह बालक हिम्मत करके पुन: बोला - "नम्बर दो का धंधा किया ही क्यों ? जिससे मैं-मैं, तू-तू के साथ मारपीट की नौबत आ गयी और हथियार हाथ में होने से पार्टनर की हत्या हो गई।"
ननद कहती - "बबुआ ! तू बार-बार बीच में क्यों बोलता है? क्या तू चुप नहीं रह सकता, अभी जमीन से ऊपर तो उठा नहीं, करने लगा नं. एक और नं. दो बिजनिस की बातें।
अरे ! जब से इस कलमुँही भाभी का मुँह देखा, तभी से मेरा घरवाला तो दिन-दूनी रात-चौगुनी पीने लगा है। पहले मुझसे थोड़ाबहुत प्रेमालाप कर भी लेता था; पर अब तो मेरी ओर झाँक कर भी नहीं देखता। जब देखो तब इसी के गुण गाया करता है। निकालो डायन को इस घर से । पता नहीं और किस-किस को अपने वश में कर लेगी यह?
पन्द्रह दिन में ही रूपेश भैया पर तो इसने ऐसा जादू कर दिया था, उनका ऐसा मन मोह लिया था कि कुछ पूछो मत । मुहल्ले वाले भी इसकी तारीफ करते नहीं थकते। अड़ौसी-पड़ौसी रूपेश भैया को याद करने के बजाय, उनके वियोग पर दुःख प्रगट करने के बजाय इसके प्रति ही सहानुभूति दिखा-दिखा कर इसके ही दुःख को रोया करते हैं। ऐसी कौन-सी जादुई विद्या है इसके पास ? कौन-सा मोहिनी मंत्र जानती है यह, जो सभी लोग इसकी बातों और व्यवहार से प्रभावित हो जाते हैं।”
___पास में खड़ा एक सरल स्वभाव का भोला बालक बोला - अंकल ऐसे धंधे के चक्कर में पड़े ही क्यों हो? कोई ऐसा धंधा क्यों नहीं कर लेते, जिसमें न कोई जान की जोखम हो और न आकुलता उत्पन्न करनेवाली अधिक हानि हो।