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ये तो सोचा ही नहीं उसकी गिड़गिड़ाहट और धमकी सुनकर भगवान आपका सिंहासन ही हिल जाता है। असली ईश्वर को तो आज के युग में किसी ने देखा नहीं, पर फिल्मों के पर्दे पर तो तथाकथित भगवान का सिंहासन डोल ही जाता है। क्या यह सही है?
ऐसे ईश्वर कर्तृत्त्ववादी दर्शन की बात महाकवि माखनलालजी चतुर्वेदी जैसे बुद्धिजीवियों के गले कुछ कम ही उतरती है।"
सुनीता ने कहा - "इन तीनों व्यवस्थाओं में यदि मुझे चुनाव करने का मौका मिला तो मैं तो ऑटोमेटिक व्यवस्था ही पसन्द करूँगी।"
इस संवाद से इतनी शिक्षा तो मिल ही जाती है कि - विश्व व्यवस्था कर्म प्रधान है, अत: हमें पाप कर्म से तो बचना ही है और पुण्य कर्म या सत्कर्म ही करना है; क्योंकि यही करने योग्य हैं। भले वह पापकर्म का दण्ड ईश्वर दे या कर्म की प्रकृति दे। बुरे काम का बुरा नतीजा तो भोगना ही पड़ेगा।
संभवत: इन्हीं उलझनों के न सुलझने से अधिकांश व्यक्ति ऑटोमेटिक (स्व-सञ्चालित) विश्व व्यवस्था में ही अपना विश्वास व्यक्त करने लगे हैं। ज्ञानेश के इन तथ्यों को सुनकर सुनीता विचारों में खो गई। वह सोचने लगी कि - 'यदि ऐसा है तो फिर हम जो भाग-दौड़ करते हैं, क्या यह सब हमारा मात्र मोह है। यह समझने के लिए एक महत्त्वपूर्ण एवं रोचक सबजेक्ट तो है ही। कभी समय निकालकर इसे विस्तार से समझना होगा।
सात खोटे भावों का क्या फल होगा? गम्भीर, विचारशील और बड़े व्यक्तित्व की यही पहचान है कि वे नासमझ और छोटे व्यक्तियों की छोटी-छोटी बातों से प्रभावित नहीं होते, किसी भी क्रिया की बिना सोचे-समझे तत्काल प्रतिक्रिया प्रगट नहीं करते । अपराधी पर भी अनावश्यक उफनते नहीं हैं, बड़बड़ाते नहीं हैं; बल्कि उसकी बातों पर, क्रियाओं पर शान्ति से पूरी बात को समझ कर, उसके साइड इफेक्ट्स पर विचार करके उचित निर्णय लेते हैं, तदनुसार कार्यवाही करते हैं, यदि आवश्यक हुआ तो मार्गदर्शन भी देते हैं।
ज्ञानेश ने यही सोचकर धनेश से अधिक कुछ न कह कर बड़ी ही शालीनता से मात्र दो बातों पर विचार करने के लिये कहा। एक तो यह कि - 'ये जो दूसरों का शोषण करके अपना पोषण करने आदि के खोटे भाव होते हैं, इनका फल क्या होगा? और दूसरे यह कि जो दुश्चरित्र बन रहा है, वह क्यों बन रहा है ? इस पर गंभीरता से सोचो।
धनेश उस समय तो ज्ञानेश की बातों की उपेक्षा करके चला गया; पर ज्ञानेश की बातों ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। वे बातें उसके मनमस्तिष्क पर छा गईं। अबतक धनेश पर ज्ञानेश के गंभीर व्यक्तित्व की कुछ-कुछ छाप भी पड़ चुकी थी, इस कारण वह रात में बहुत देर तक उन्हीं बातों के बारे में सोचता रहा । ज्ञानेश ने दो बातों पर विचार करने के लिए कहा - एक तो यह कि - यह दुष्चरित्र कैसे बन रहा है और दूसरी यह कि - ये जो खोटे भाव हो रहे हैं, इनका क्या फल भोगना होगा ? धनेश सोचता है - आखिर, ज्ञानेश यह कहकर मुझे समझाना
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