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प्रथम संस्करण : ३,००० (१जनवरी, २००७)
प्रस्तुत संस्करण की कीमत कम करने वाले दातारों की सूची १. श्री महावीरप्रसादजी जैन, जयपुर
५,१०१.०० २. श्री हजारीलालजी नवीनकुमारजी, अलवर ३. श्री चिद्रूपजी शाह, अहिंसा चैरिटेबल ट्रस्ट, जयपुर १,००१.०० ४. श्री शान्तिनाथजी सोनाज, अकलूज़
५०१.०० ५. श्रीमती कुसुम जैन ध.प. विमलकुमारजी जैन, दिल्ली ६. कु, मीना सुपुत्री ऊषा टीकमचन्दजी पंचोली, इन्दौर ७. श्रीमती कमलाबाई रतनचन्दजी भारिल्ल, जयपुर ८. श्री मांगीलाल अर्जुनलालजी छाबड़ा, इन्दौर ९. श्री बाबूलाल तोतारामजी जैन, भुसावल १०. श्री मयूरभाई एम. सिंघवी, मुम्बई ११. श्रीमती शान्तिदेवी धनकुमारजी जैन, जयपुर
१२. श्री सुरेशचन्दजी सुनीलकुमार जैन, बैंगलोर मूल्य : १२ रुपये
१३, श्रीमती रश्मिदेवी वीरेशजी कासलीवाल, सूरत १४. श्रीमती पतासी देवी इन्द्रचन्दजी पाटनी, लाडनूं
२५१.०० १५. ब्र. कुसुमताई पाटील, कुम्भोज
२५१.०० १६. स्व. ऋषभकुमार जैन पुत्र श्री सुरेशकुमारजी जैन, पिड़ावा १७. श्रीमती श्रीकान्ताबाई पूनमचन्दजी छाबड़ा, इन्दौर १८. श्रीमती नीलूध.प. राजेशकुमार मनोहरलालजी काला, इन्दौर २०१.०० १९. श्रीमती विमलादेवी सुमेरमलजी पहाड़िया, तिनसुकिया २०१.०० २०. श्रीमती पानादेवी मोहनलालजी सेठी, गोहाटी २१. श्रीमती माणकबाई पाण्ड्या, इन्दौर
२२. श्रीमती गुलाबी देवी लक्ष्मीनारायणजी रारा, शिवसागर मुद्रक :
कुल राशि १२,०२१.०० प्रिन्ट 'ओ' लैण्ड बाईस गोदाम, जयपुर
प्रकाशकीय 'यदि चूक गये तो' कृति अध्यात्म रत्नाकर पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल द्वारा लिखित हरिवंश कथा एवं शलाका पुरुष भाग एक और दो में आये सिद्धान्त सूत्रों, सूक्तियों एवं लोक व्यवहार में आने वाले नीति वाक्यों का भवतापहारी श्रेष्ठ संकलन है, जिसे श्रीमती शान्तिदेवी जैन ने संकलित कर लिपिबद्ध किया है। ___ पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल सिद्धहस्त और लोकप्रिय लेखक हैं जिन्होंने जैनदर्शन के गढ सिद्धान्तों को सरलतम उपन्यास एवं निबन्ध शैली के अतिरिक्त कथा शैली में अनेक पुस्तकों का प्रणयन किया है। आपके द्वारा लिखी गई। उपर्युक्त तीनों कृतियाँ समाज में समादृत तो हुई ही हैं, लोकप्रिय भी हुई है। इनका मराठी भाषा में भी अनुवाद हो रहा है।
हमारे मन में अनेक बार ऐसा विचार आया कि 'जिन खोजा तिन पाईंयाँ' की भाँति ही उपर्युक्त कृतियों के सिद्धान्त सूत्रों को भी संक्षेप में संकलित करके प्रकाशित किया जाय; परन्तु इसकी काललब्धि अब आई है और श्रीमती शान्तिदेवी ने ही इन कृतियों का भी स्वान्तः सुखाय गहन अध्ययन करके सिद्धान्त सूत्रों का संकलन करके हमारी भावनाओं को साकाररूप प्रदान किया है। एतदर्थ उन्हें जितना भी धन्यवाद दें, थोड़ा है।
उनके इस कार्य में भी उनके पतिदेव श्री एम.पी. जैन ने भरपूर सहयोग दिया है, इसका सम्पादन कर इसे प्रकाशन योग्य तो बनाया ही, इस कृति की कीमत कम कर जन-जन तक पहुँचाने के लिए स्वयं एवं अपने परिचितों के सहयोग से आर्थिक योगदान भी उपलब्ध कराया है, एतदर्थ उनके आभारी हैं। इसके सुन्दर प्रकाशन के लिए श्रीयुत अखिल बंसल धन्यवाद के पात्र हैं। आशा है पाठकगण अन्य कृतियों की भाँति इससे भी लाभान्वित होंगे।
___ - ब्र. यशपाल जैन, एम.ए. प्रकाशन मंत्री - पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर
२५१.०० २०१.००
१५१.००
१०१.००