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वीतराग-विज्ञान भाग -३
पाठ८
निश्चय और व्यवहार
आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी
(व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व) आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी के पिता श्री जोगीदासजी खण्डेलवाल दिगम्बर जैन गोदीका गोत्रज थे और माँ थीं रंभाबाई । वे विवाहित थे। उनके दो पुत्र थे - हरिश्चन्द्र और गुमानीराम । गुमानीराम महान प्रतिभाशाली और उनके समान ही क्रान्तिकारी थे। यद्यपि उनका अधिकांश जीवन जयपुर में ही बीता, किन्तु उन्हें अपनी आजीविका के लिए कुछ समय सिंघाणा अवश्य रहना पड़ा था। वे वहाँ दिल्ली के एक साहकार के यहाँ कार्य करते थे।
परम्परागत मान्यतानुसार उनकी आयु यद्यपि २७ वर्ष मानी जाती है। किन्तु उनकी साहित्यसाधना, ज्ञान व नवीनतम प्राप्त उल्लेखों व प्रमाणों के आधार पर यह निश्चित हो चुका है कि वे ४७ वर्ष तक जीवित रहे। उनकी मृत्यु तिथि वि.सं. १८२३-२४ लगभग निश्चित है, अत: उनका जन्म वि.सं. १९७६-७७ में होना चाहिए।
उनकी सामान्य शिक्षा जयपुर की एक आध्यात्मिक (तेरापंथ) सैली में हुई; परन्तु अगाध विद्वत्ता केवल अपने कठिन श्रम एवं प्रतिभा के बल पर ही उन्होंने प्राप्त की, उसे बाँटा भी दिल खोलकर । वे प्रतिभा सम्पन्न, मेधावी और अध्ययनशील थे। प्राकृत, संस्कृत और हिन्दी के अतिरिक्त उन्हें कन्नड़ भाषा का ज्ञान था। आपके बारे में संवत् १८२१ में ब्र. राजमल 'इन्द्रध्वज विधान महोत्सव
पत्रिका' में लिखते हैं - "ऐसे पुरुष महंत बुद्धि का धारक ईकाल विषै होना दुर्लभ है। तातैं यांसू मिलें सर्व संदेह दूरि होइ है।"
आप स्वयं मोक्षमार्गप्रकाशक में अपने अध्ययन के बारे में लिखते हैं - "टीकासहित समयसार, पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, नियमसार, गोम्मटसार, लब्धिसार, त्रिलोकसार, तत्त्वार्थसूत्र इत्यादि शास्त्र और क्षपणासार, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, अष्टपाहुड़, आत्मानुशासन आदि शास्त्र और श्रावक-मुनि के आचार के प्ररूपक अनेक शास्त्र और सष्ठकथासहित पराणादिशास्त्र- इत्यादि अनेक शास्त्र हैं, उनमें हमारे बुद्धि अनुसार अभ्यास वर्तता है।"
उन्होंने अपने जीवन में छोटी-बड़ी बारह रचनाएँ लिखीं, जिनका परिमाण करीब एक लाख श्लोक प्रमाण है, पाँच हजार पृष्ठ के करीब । इनमें कुछ तो लोकप्रिय ग्रंथों की विशाल प्रामाणिक टीकाएँ हैं और कुछ हैं स्वतंत्र रचनाएँ। वे गद्य और पद्य दोनों रूपों में पाई जाती हैं। वे कालक्रमानुसार निम्नलिखित हैं :
(१) रहस्यपूर्ण चिट्ठी (वि.सं. १८११) (२) गोम्मटसार जीवकाण्ड भाषा टीका (३) गोम्मटसार कर्मकाण्ड भाषा टीका
| *सम्यग्ज्ञान चंद्रिका (४) अर्थसंदृष्टि अधिकार
(वि.सं. १८१८) (५) लब्धिसार भाषा टीका (६) क्षपणासार भाषा टीका (७) गोम्मटसार पूजा (८) त्रिलोकसार भाषा टीका (९) समवशरण रचना वर्णन (१०) मोक्षमार्गप्रकाशक (अपूर्ण) (११) आत्मानुशासन भाषा टीका (१२) पुरुषार्थसिद्धयुपाय भाषा टीका (अपूर्ण)
इसे पण्डित दौलतराम कासलीवाल ने वि.सं. १८२७ में पूर्ण किया। * गोम्मटसार जीवकाण्डवकर्मकाण्ड भाषा टीका, लब्धिसार व क्षपणासार भाषा टीका एवं अर्थसंदृष्टि
अधिकार को 'सम्यग्ज्ञान चन्द्रिका' भी कहते हैं।
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