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पर प्रहार करने को एकसाथ तलवार उठाई; किन्तु उनके हाथ कीलित होकर उठे ही रह गये । प्रात: यह समाचार जब राजा और जनता ने सुना तो सब वहाँ आ गये। मुनिराज की सबने स्तुति की और राजा ने चारों मंत्रियों को देशनिकाला दे दिया।
छात्र - वे मुनिराज रात को वहाँ कैसे रहे ? उन्हें तो जहाँ संघ ठहरा था, वहीं ध्यानस्थ रहना चाहिए था। ___ अध्यापक - जब उन्होंने उक्त विवाद की चर्चा आचार्यश्री से की तो उन्होंने कहा कि तुम्हें उनसे चर्चा ही नहीं करनी चाहिए थी; क्योंकि जिसप्रकार सॉप को दूध पिलाने से विष ही बनता है, उसीप्रकार तीव्र कषायी जीवों से की गई तत्त्वचर्चा उनके क्रोध को ही बढ़ाती है। हो सकता है कि वे कषाय की तीव्रता में कोई उपसर्ग करें। अत: तुम उसी स्थान पर जाकर रात को ध्यानस्थ रहो।
छात्र - फिर.........................?
अध्यापक- वे चारों मंत्री हस्तिनापुर के राजा पदमराय के यहाँ जाकर कार्य करने लगे। किसी बात पर प्रसन्न होकर पद्मराय ने उन्हें मुँह माँगा वरदान माँगने को कहा। उन्होंने उसे यथासमय लेने की अनुमति ले ली।
एक बार वे अकंपनाचार्य आदि सात सौ मुनिराज विहार करते हुए हस्तिनापुर पहुंचे। उन्हें आया देख बलि ने राजा पद्मराय से सात दिन के लिए राज्य माँग लिया। राज्य पाकर वह मुनिराजों पर घोर उपसर्ग करने लगा।
तब राजा पद्मराय के भाई जो पहिले मुनि हो गये थे, उन मुनिराज विष्णुकुमार ने उनकी रक्षा की।
छात्र - ऐसे दुष्ट शक्तिशाली राजा से निःशस्त्र मुनिराज ने कैसे रक्षा की? अध्यापक - मुनिराज को विक्रिया ऋद्धि प्राप्त थी। छात्र - विक्रिया ऋद्धि क्या होती है ?
अध्यापक - विक्रिया ऋद्धि उसे कहते हैं, जिसके बल से अपने शरीर को चाहे जितना बड़ा या छोटा बना लें।
मुनिराज ने अपना पद त्याग कर बावनिया का भेष बनाया और बलि के दरबार में पहुँचे। बलि ने उनसे इच्छानुसार वस्तु माँगने की प्रार्थना की। उन्होंने अपने कदमों से तीन भूमि माँगी। जब बलि ने तीन कदम भूमि देना स्वीकार कर लिया तो उन्होंने अपने शरीर को बढा
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लिया और समस्त भूमि को दो पगों में ही नाप लिया। इस तरह बलि को परास्त कर मुनिराजों ने रक्षा की। वह दिन श्रावण की पूर्णिमा का था। अत: उसी दिन से रक्षाबंधन पर्व चल पड़ा । मुनिराजों की रक्षा हुई और बलि का बंधन हुआ। छात्र - क्या मुनि की भूमिका में भी यह सब हो सकता है ?
अध्यापक - नहीं भाई ! तुमने ध्यान से नहीं सुना । हमने कहा था कि उन्होंने मुनिपद छोड़कर बावनिया का भेष बनाया। यह कार्य उनके पद के योग्य न था, तभी तो उनको प्रायश्चित्त लेना पड़ा, दुबारा दीक्षा लेनी पड़ी।
छात्र - धन्य है उन मुनि विष्णुकुमार को।
अध्यापक - वास्तव में धन्य तो वे अकंपनाचार्य आदि मनिराज हैं, जिन्हें इतनी विपत्तियाँ भी आत्मध्यान से न डिगा सकीं।
छात्र - हाँ ! और वे श्रुतसागर मुनि, जिन्होंने बलि आदि से विवाद कर उनका मंद खंडित किया।
अध्यापक - उनकी विद्वता तो प्रशंसनीय है, पर दुष्टों से उलझना नहीं चाहिए था। आत्मा की साधना करनेवाले को दुष्टों से उलझना ठीक नहीं।
छात्र - क्यों?
अध्यापक - देखो न, उसी के परिणामस्वरूप तो इतना झगड़ा हुआ। अत: प्रत्येक आत्मार्थी को चाहिए कि वह जगत् के प्रपंचों से दूर रहकर तत्त्वाभ्यास में प्रयत्नशील रहे । यही संसार-बंधन से रक्षा का सच्चा उपाय है।
प्रश्न १. रक्षाबंधन कथा अपने शब्दों में लिखिए। २. मुनि विष्णुकुमार को उपसर्ग निवारणार्थ मुनिपद क्यों छोड़ना पड़ा? ३. श्रुतसागर मुनिराज को अकंपनाचार्य ने वाद-विवाद के स्थान पर जाकर रात्रि में ध्यानस्थ होने का आदेश क्यों दिया? ४. उक्त कथा पढ कर जो भाव पैदा होता है, उन्हें व्यक्त कीजिए।
१. जिसका शरीर बहुत छोटा बावन अंगुल का होता है, उसको बावनिया कहते हैं।
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