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विदाई की बेला/७ अनायास सेठ की यह स्थिति देखकर घर के सभी लोग घबड़ा गये। किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि देखते ही देखते यह क्या हो गया, अभी तो सेठजी महात्माजी से अच्छी भली बातें कर रहे थे और अभी-अभी चल बसे।
फिर क्या था, तत्काल सभी उनसे प्राप्त होने वाले अपने-अपने सुखों को, स्वार्थों को याद कर-करके रोने लगे।
रात्रि के दस बज रहे थे, इस कारण रातभर का समय तो उनके शव के पास बैठकर सबको गुजारना ही था । आधा-पौन घंटे रोने की औपचारिकता पूरी करके सब घर-बाहर की बातें करने लगे। भविष्य की रूपरेखायें बनने लगीं। इसी बीच संपत्ति के स्वामित्व और बँटवारे की बातें भी प्रारंभ हो गईं। बेटे-बेटियों और भाई-बंधुओं में एक अलग प्रकार की सुगबुगाहट शुरु हो गई। बेटे-बेटियों और भाई-बंधु बड़ी ही बेशर्मी से संपत्ति पर अपना-अपना एकाधिकार जताने के चक्कर में थे। सभी सेठ पर पक्षपात के आरोप लगा-लगाकर उनको बुरा-भला कह रहे थे।
उन बेचारों को क्या पता था कि सेठजी मरे नहीं थे, बल्कि महात्माजी की योजना के अनुसार अपने परिवार की परीक्षा करने के लिए, उनकी भावनाओं को परखने के लिए महात्माजी के द्वारा ही कान में फूंके गये मंत्र के मुताबिक मरने का नाटक कर रहे थे। ऐसी स्थिति में वहाँ जो भी बातें हुईं थीं, उन्हें सुनकर सेठजी को महात्माजी की बातों पर कुछ-कुछ विश्वास हो चला था।
यद्यपि सेठ को अपने परिजनों की बातों से उनके ऊपर क्रोध आ रहा था, पर वह सेठ उन लोगों की भावनाओं को और गहराई से जानना चाहता था, अतः चुपचाप वैसे ही आँखें बंद किए मृतवत् रात भर पड़ा रहा और उनकी बातें सुनता रहा। इससे उसका मन उनके प्रति ग्लानि से भर गया। जितना उसे उनके प्रति राग था, उससे कहीं अधिक द्वेष हो गया।
विदाई की बेला/७
प्रातः होते ही महात्माजी फिर सेठ के घर सहानुभूति दर्शाने के बहाने आ धमके। और सेठ के घर के सभी सदस्यों को बुलाया तथा एक कटोरे में जल को मंत्रित करके एक-एक कर सबसे कहा कि जो इस जल को पी लेगा, उसके जीवन के बीस-बीस वर्ष सेठजी को मिल जायेंगे। फिर तुम्हारे अंतिम समय तक सेठजी तुम्हारे साथ रह सकेंगे। यदि एक ही व्यक्ति अपने जीवन के बीस वर्ष नहीं देना चाहता तो पति-पत्नी दोनों मिलकर भी आधा-आधा पानी पीलें तो दोनों अपने जीवन के दस-दस वर्ष भी दे सकते हैं।
सभी एक दूसरे का मुँह ताकने लगे, बहुत प्रतीक्षा करने के बाद जब कोई भी आगे नहीं आया तो मृतवत् पड़े सेठ को और भी अधिक क्रोध आया, वह आग-बबूला हो गया, क्रोध में उसके ओठ थर-थर कांपने लगे। वह चिल्लाया - “सब हट जाओ मेरे सामने से। अब मेरी समझ में अच्छी तरह आ गया कि तुम लोग कितने स्वार्थी हो? आज तुमने मेरा भ्रम भंग कर दिया है, मेरी आँखें खोल दी हैं। अब समझ में आया कि महात्माजी का कहना शत-प्रतिशत सही था, जिस पर अब तक मैंने विश्वास नहीं किया था।"
महात्माजी ने सेठ को शांत करते हुए कहा - "भाई! इसमें इन लोगों का कोई दोष नहीं है। तुम्हीं भ्रम में थे। ये लोग अपनी आयु तुम्हें देना भी चाहें तो भी नहीं दे सकते।
लोक की स्व-संचालित वस्तु व्यवस्था में ऐसा कुछ भी संभव नहीं है; जो ऐसा मानते हैं या कहते हैं, वे स्वयं को एवं दूसरों को धोखा देते हैं। जो निश्चित है, उसे कौन पलट सकता है?"
महात्माजी ने सेठ से आगे कहा - "कोई किसी को सुखी-दुःखी नहीं कर सकता, जीवन-मरण नहीं दे सकता; क्योंकि कोई किसी को अपने पुण्य-पाप नहीं दे सकता, आयु नहीं दे सकता।"
देखो न! समयसार के बंध अधिकार में आचार्य कुंदकुंद ने कितना स्पष्ट लिखा है -
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