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________________ विदाई की बेला/२ किसी ने ठीक ही तो कहा है - 'बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध लेय' "भूल की पुनरावृत्ति न होने देना ही भूल का सबसे बड़ा प्रायश्चित्त है। अतः भूल को भूल जाओ, वर्तमान को संभालो, भविष्य स्वयं संभल जायेगा।" सदासुखी ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा - "पुनरावृत्ति का तो अब प्रश्न ही नहीं, पर ।" “पर क्या” - विवेकी ने कहा। सदासुखी ने कहा – “यही कि अब तो वे इस दुनिया में ही नहीं विदाई की बेला/२ भी नहीं थी सो जब जो चाहा तत्काल मिलता रहा। पर इसका परिणाम अच्छा नहीं हुआ। एक बड़े बाप के इकलौते बेटे में जिन दुर्गुणों के आ जाने की संभावना रहती है, वे सब दुर्गुण धीरे-धीरे मुझमें भी आ गए। ____ जैसे-जैसे समय बीतता गया, वे वृद्ध होते चले गये और मैं युवा। उनका ग्रामीण रहन-सहन था और मुझे नये जमाने की हवा लग चुकी थी। फिर भी पिताजी ने कल-कारखानों का संपूर्ण कारोबार मेरे हाथों में सौंप दिया था और माताजी ने घर की सब चाबियाँ मेरी धर्मपत्नी को सम्हला दी थी। इसके बाद तो वे माता-पिता के नाते हम लोगों को केवल सही सलाह देने की पवित्र भावना से ही बात किया करते थे। पिताजी मुझे नेक सलाह देने की सद्भावना से अपने जीवन का अमूल्य समय ऑफिस में आकर बिताते थे और माताजी मेरी पत्नी को अपने जीवन भर के अनुभवों का लाभ देना चाहती थी, अतः बीमारी की हालत में भी चौके में पहुँच कर नये-नये व्यंजन बनाकर बताना चाहती थी; पर उस समय हमारी बुद्धि पर ऐसे पत्थर पड़ गये थे कि हमने उनकी भावनाओं की कोई कदर नहीं की, उल्टा उनकी पवित्र भावनाओं का अनादर ही किया। एक बार तो हमारे द्वारा उनके प्रति ऐसा अक्षम्य अपराध बन गया था कि न वे उसे जीवन भर भूल पाये और न हम ही उसे आजीवन भूल सकेंगे।" विवेकी ने पूछा - "ऐसी क्या भूल हुई जिसे तुम कभी नहीं भूल "न सही यहाँ, वे जहाँ भी होंगे, सुखी होंगे; क्योंकि जिनका मरण शान्त भावों से होता है, समतापूर्वक होता है; वे तो हमेशा सुखी ही रहते हैं।" विवेकी ने आगे कहा - "तुम्हारे ही कहे अनुसार तुम्हारे मातापिता का मरण भी समतापूर्वक हुआ है, शान्त भावों से हुआ है। अतः वे भी निश्चित ही उत्तम गति को प्राप्त हुए होंगे। ____ मैं तो तुम्हारी उस घटना को जानना चाहता हूँ, जिसके कारण तुम इतने दुःखी हो, यदि तुम्हें असुविधा न हो तो कहो। उसे कह देने से तुम्हारा जी भी हल्का हो जाएगा और हो सकता है मुझे भी कुछ नवीन सीखने को मिल जाय।" सदासुखी ने दुःखी मन से अपनी कहानी कहना प्रारंभ किया - “मैं अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र था, इस कारण उनके भविष्य की आशा भी एकमात्र मैं ही था। उन्होंने मुझसे बहुत सारी आशायें लगा रखी थीं, नाना प्रकार के सुनहरे स्वप्न संजो रखे थे। अतः वे भी मेरी सभी आकाक्षाएँ पूरी करने में सदैव तत्पर रहते थे। घर में पैसे की कमी तो तब सकते?" ___ सदासुखी ने पश्चाताप के आँसुओं से अपने अपराध का प्रक्षालन करते हुए कहा - "बात यों हुई, पिताजी प्रायः देहाती पोषाक में धोतीकुर्ता पहिने एवं सिर पर साफा (पगड़ी) बाँधे कुर्सी पर पाँव रखे बैठे रहते थे। मेरे मित्र आते और मुझसे पूछते कि इस देहाती बूढ़े को हम कई दिनों (10)
SR No.008385
Book TitleVidaai ki Bela
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size325 KB
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