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अनुक्रमणिका
प्रकाशकीय संपादकीय
३ ४/५
सूक्तियाँ
'म-य 'य-र' 'ल-व'
३२-३३
'अ-आ' ११ 'आ-इ-ई-उ-ए' १२
'व-श-श्र-स'
३४
३५-३७
'क-ख-ग 'च-ज-त' 'त-द' 'द-ध' 'ध-न'
'ह-त्र-ज्ञ' सुभाषित लम्ब-१ लम्ब-२ लम्ब-३ लम्ब-४ लम्ब-५ लम्ब-६ लम्ब-७ लम्ब-९-१० लम्ब-११
आचार्य वादीभसिंह कृत क्षत्रचूड़ामणि ग्रन्थ से
संकलित सूक्तिसंग्रह
'अ' १. अकुतोभीतिता भूमे पानामाज्ञयान्यथा ।।३/४२ ।।
राजाओं की आज्ञा से भूमण्डल पर कहीं से भी भय नहीं रहता। २. अङ्गजायां हि सूत्यायामयोग्यंकालयापनम् ।।३/३८।।
कन्या के जवान हो जाने पर विवाह के बिना काल बिताना अनुचित है। ३. अङ्गारसदृशी नारी नवनीतसमा नराः ।।७/४१ ।।
स्त्री अंगारे के समान तथा पुरुष मक्खन के समान हैं। ४. अजलाशयसम्भूतममृतं हि सतां वचः।।२/५१।।
सजनों के वचन जलाशय के बिना ही उत्पन्न हुए अमृत के समान हैं। ५. अञ्जसा कृतपुण्यानां न हि वाञ्छापि वञ्चिता ।।८/६७।।
सच्चे पुण्यवान पुरुषों की इच्छा भी विफल नहीं होती। ६. अतक्र्यं खलु जीवानामर्थसञ्चयकारणम् ।।३/१२ ।।
मनुष्यों के धन संचय का कारण कल्पनातीत है। ७. अत_सम्पदापढ्यां विस्मयो हि विशेषतः ।।१०/४६।।
अकस्मात् सम्पत्ति और विपत्ति के आने से विशेषरूप से आश्चर्य होता है। ८. अत्यक्तं मरणं प्राणैः प्राणिनां हि दरिद्रता ।।३/६।।
दरिद्रता मनुष्य के लिए प्राणों के निकले बिना ही जीवित मरण है। ९. अत्युत्कटो हि रत्नांशुस्तज्ज्ञवेकटकर्मणा ।।११/८४ ।।
२०-२२
२४-२५ २६
'प-फ-ब-भ'