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________________ प्रकाशकीय देवाधिदेव तीर्थंकर भगवान महावीर के २६ सौ वें जन्मकल्याणक वर्ष में यह लघु कृति 'सूक्तिसंग्रह' का प्रकाशन करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है । जीवन संवारने हेतु यह कृति संजीवनी बूटी के सदृश है, जो 'सतसैया के दोहरे ज्यों नाविक के तीर, देखन में छोटे लगत, घाव करें गंभीर' कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। पुस्तक में प्रकाशित सूक्तियों का संकलन आचार्य वादीभसिंह विरचित ‘क्षत्रचूड़ामणि' ग्रंथ से ब्र. यशपालजी ने बहुत ही श्रमपूर्वक किया है, उनके इस कार्य की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। संग्रहीत सूक्तियाँ जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी एवं सार्थक हैं। यदि इनक अध्ययन कर उन पर चिन्तन-मनन किया जाए तो निश्चित ही भावों में निर्मलता एवं जीवन में शुचिता आए बिना नहीं रहेगी । कृति के सम्पादक ब्र. यशपालजी ने जब से प्रकाशन के कार्य में रुचि लेना प्रारंभ किया है, तभी से उनके सम्पादन में अनेक लोकोपयोगी संग्रहों का प्रकाशन हुआ है। सभी प्रकाशन एक से बढ़कर एक हैं। वे शतायु हों और इसीप्रकार साहित्य सेवा में संलग्न रहकर बिखरे वैभव को संजोकर हमें उपलब्ध कराते रहें, ऐसी भावना है। पुस्तक के प्रकाशन का दायित्व सदा की भांति प्रकाशन विभाग के प्रभारी श्री अखिल बंसल ने बखूबी सम्हाला है। पुस्तक का नयनाभिराम आवरण भी उन्हीं की कल्पनाशीलता का परिणाम है। पुस्तक को अल्पमूल्य में उपलब्ध कराने का श्रेय दान दातारों को है। जिन महानुभावों का भी इस प्रकाशन में प्रत्यक्ष या परोक्ष सहयोग प्राप्त हुआ है, हम सभी का हृदय से आभार मानते हैं। आप सभी प्रस्तुत प्रकाशन का भरपूर लाभ लें व अपने जीवन को सार्थक बनावें, इसी भावना के साथ - नेमीचंद पाटनी महामंत्री
SR No.008381
Book TitleSuktisangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2002
Total Pages37
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size197 KB
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