________________
समयसार
५८८
कर्मबंधव्यपगमव्यंजितसहजस्पर्शादिशून्यात्मप्रदेशात्मिका अमूर्तत्वशक्तिः।
सकलकर्मकृतज्ञातृत्वमात्रातिरिक्तपरिणामकरणोपरमात्मिका अकर्तृत्वशक्तिः । सकलकर्मकृतज्ञातृत्वमात्रातिरिक्तपरिणामानुभवोपरमात्मिका अभोक्तृत्वशक्तिः।
उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्वशक्ति का कार्य उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से संयुक्त होना मात्र है और परिणामशक्ति का कार्य परस्पर विरुद्ध-अविरुद्ध परिणामों का टिका रहना और परिणमित होते रहना है। ध्रुवरूप परिणाम तो अपरिणामी ही है, वह सदा अपरिणामी ही रहे - यह भी परिणामशक्ति का कार्य है और निरन्तर बदलनेवाले उत्पाद-व्ययरूप परिणाम अपने सुनिश्चितक्रमानुसार बदलते रहें, एक समय को भी बदले बिना न रहें - यह भी परिणामशक्ति का कार्य है।
ध्रवरूप में रंचमात्र भी परिवर्तन नहीं होना और उत्पाद-व्ययरूप में निरन्तर परिणमित होते रहना आत्मवस्तु का मूलस्वरूप है। आत्मवस्तु के इसी मूलस्वरूप का नाम परिणामशक्ति है।।
परिणामशक्ति के स्वरूप को जानने का पहला लाभ तो यह है कि हमारा मूल ध्रुवस्वभाव इसी शक्ति के कारण पूर्ण सुरक्षित है। वह अनादि से जैसा है, अनन्त काल तक वैसा ही रहेगा; न तो उसका नाश ही हो सकता है और न उसमें कोई बदलाव ही होता है।
दूसरे हममें होनेवाले सुनिश्चित परिवर्तन के लिए भी हमें पर की ओर देखने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि इस परिणामशक्ति के कारण मूल स्वभाव अर्थात् स्वभाव की ध्रुवता सहज ही कायम रहती है और पर्यायों में परिवर्तन भी सहज ही हुआ करता है। इसप्रकार परिणामशक्ति की चर्चा के करने के उपरान्त अब अमूर्तत्वशक्ति की चर्चा करते हैं।
२०. अमूर्तत्वशक्ति इस बीसवीं अमूर्तत्वशक्ति का स्वरूप आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है - यह अमूर्तत्वशक्ति कर्मबंध के अभाव से व्यक्त सहज स्पर्शादिशून्य आत्मप्रदेशात्मक है।
उक्त अमूर्तत्वशक्ति के कारण भगवान आत्मा रूप, रस, गंध और स्पर्श से रहित अमूर्त पदार्थ है। यह देह स्पर्शादिमय होने से मूर्त है और भगवान आत्मा अमूर्त है; अत: आत्मा देहादि से भिन्न ही है। आत्मद्रव्य के सभी गुणों और पर्यायों में अमूर्तत्वशक्ति का रूप होने से सभी गुण और पर्यायें भी अमूर्त हैं। ___ इसप्रकार अमूर्तत्वशक्ति का स्वरूप समझने के उपरान्त अब अकर्तृत्वशक्ति और अभोक्तृत्वशक्ति का स्वरूप समझते हैं -
२१-२२. अकर्तृत्वशक्ति और अभोक्तृत्वशक्ति इस इक्कीसवीं अकर्तृत्वशक्ति और बाईसवीं अभोक्तृत्वशक्ति का स्वरूप आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है -
ज्ञानभाव से भिन्न कर्मोदय से होनेवाले रागादि विकारी भावों के कर्तृत्व से रहित होनेरूप अकर्तृत्वशक्ति है। इसीप्रकार ज्ञानभाव से भिन्न कर्मोदय से होनेवाले रागादि विकारी परिणामों के अनुभव से, भोक्तृत्व से रहित होनेरूप अभोक्तृत्वशक्ति है।