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परिशिष्ट
५८७ ___ द्रव्यस्वभावभूतध्रौव्यव्ययोत्पादालिंगितसदृशविसदृशरूपैकास्तित्वमात्रमयी परिणामशक्तिः ।
तात्पर्य यह है कि इस भगवान आत्मा को स्वयं का अस्तित्व धारण करने के लिए, स्वयं को कायम रखने के लिए पर की ओर देखने की आवश्यकता नहीं है। न तो ध्रुव अस्तित्व को टिकाये रखने में पर के सहयोग की आवश्यकता है और न स्वयं में प्रतिसमय होनेवाले उत्पाद-व्ययरूप परिवर्तन करने के लिए ही पर के सहयोग की अपेक्षा है; क्योंकि यह भगवान आत्मा इस शक्ति के कारण स्वभाव से ही उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्व सम्पन्न है। इस उत्पादव्ययध्रवत्वशक्ति को समझाने के उपरान्त अब परिणामशक्ति की चर्चा करते हैं -
१९. परिणामशक्ति इस उन्नीसवीं परिणामशक्ति का स्वरूप आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है -
द्रव्य के स्वभावभूत उत्पादव्ययध्रौव्य से आलिंगित सदृश और विसदृश एक रूप वाली अस्तित्वमयी परिणामशक्ति है।
उत्पाद, व्यय और ध्रुवत्व द्रव्य के स्वभाव हैं। इनमें ध्रुवत्वभाव सदृश परिणाम है, सदा एक जैसा रहनेवाला परिणाम है तथा उत्पाद-व्यय विसदृश परिणाम हैं; क्योंकि वे दोनों परस्पर विरुद्ध स्वभाववाले हैं। एक का स्वभाव उत्पन्न होनेरूप है और दूसरे का स्वभाव नाश होनेरूप है; इसकारण वे परस्पर विरुद्धस्वभाववाले हैं, विसदृशस्वभाववाले हैं।
उत्पाद-व्यय विसदृश व ध्रौव्य सदृशस्वभाववाला होने पर भी तीनों एक ही हैं; क्योंकि अस्तित्व तीनों का एक रूप में ही है। तीनों का नाम ही परिणाम है।
कुछ लोग परिणमन को ही परिणाम या भाव समझते हैं; किन्तु परिणाम व भाव शब्द परिणमित होनेवाले उत्पाद-व्यय के लिए भी प्रयुक्त होता है और अपरिणामी ध्रुव के लिए भी प्रयुक्त होता है।
परिणमित होकर भी ध्रुव रहना और ध्रुव रहकर भी परिणमित होना ही परिणामशक्ति का कार्य है अथवा परिणामशक्ति है।
कुछ लोग उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्वशक्ति और परिणामशक्ति में भेद नहीं कर पाते हैं। इन दोनों में भेद करना आसान भी नहीं है; क्योंकि उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्वशक्ति को क्रमाक्रमवृत्तवृत्ति लक्षणवाली कहा गया है और परिणामशक्ति को उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य से आलिंगित सदृश-विसदृश परिणामों की एकरूपतारूप कहा गया है।
दोनों शक्तियों में उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्व तो है ही। इस कारण भेद समझने में कठिनाई होती है; परन्तु एक शक्ति में क्रमवर्ती पर्यायें और अक्रमवर्ती गुणोंवाले उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्व से संयुक्त द्रव्यस्वभाव की चर्चा है तो दूसरी शक्ति में उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य में विद्यमान सदृशता-विसदृशता की एकरूपता की चर्चा है।