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पूर्वरंग
३७ प्रमाणं तावत्परोक्षं प्रत्यक्षं च । तत्रोपात्तानुपात्तपरद्वारेण प्रवर्त्तमानं परोक्षं केवलात्मप्रतिनियतत्वेन प्रवर्त्तमानं प्रत्यक्षं च । तदुभयमपि प्रमातृप्रमाणप्रमेयभेदस्यानुभूयमानतायां भूतार्थम्, अथ च व्युदस्तसमस्तभेदैकजीवस्वभावस्यानुभूयमानतायामभूतार्थम् ।
नयस्तु द्रव्यार्थिक: पर्यायार्थिकश्च । तत्र द्रव्यपर्यायात्मके वस्तुनि द्रव्यं मुख्यतयानुभावयतीति द्रव्यार्थिकः, पर्यायं मुख्यतयानुभावयतीति पर्यायार्थिकः। तदुभयमपि द्रव्यपर्याययोः पर्यायेणानुभूयमानतायां भूतार्थम्, अथ च द्रव्यपर्यायानालीढशुद्धवस्तुमात्रजीवस्वभावस्यानुभूयमानतायामभूतार्थम्।
निक्षेपस्तु नाम स्थापना द्रव्यं भावश्च । तत्रातदगणे वस्तुनि संज्ञाकरणं नाम । सोऽयमित्यन्यत्र प्रतिनिधिव्यवस्थापनं स्थापना । वर्तमानतत्पर्यायादन्यद् द्रव्यम् । वर्तमानतत्पर्यायो भावः। तच्चतुष्टयं स्वस्वलक्षणवैलक्षण्येनानुभूयमानतायां भूतार्थम्, अथ च निर्विलक्षणस्वलक्षणैकजीवस्वभावस्यानुभूयमानतायामभूतार्थम् । __ प्रत्यक्ष और परोक्ष के भेद से प्रमाण दो प्रकार का है। जो इन्द्रिय, मन आदि उपात्त परपदार्थों एवं प्रकाश, उपदेश आदि अनुपात्त पर-पदार्थों द्वारा प्रवर्ते, वह परोक्षप्रमाण है और जो केवल आत्मा से ही प्रतिनिश्चितरूप से प्रवृत्ति करे, वह प्रत्यक्षप्रमाण है। पाँच प्रकार के ज्ञानों में मतिज्ञान व श्रुतज्ञान परोक्षप्रमाण हैं, अवधिज्ञान व मन:पर्ययज्ञान एकदेशप्रत्यक्षप्रमाण हैं और केवलज्ञान सकलप्रत्यक्षप्रमाण है।
प्रत्यक्ष और परोक्ष - ये दोनों ही प्रमाण; प्रमाता, प्रमाण और प्रमेय के भेद का अनुभव करने पर भूतार्थ हैं, सत्यार्थ हैं; किन्तु जिसमें सर्वभेद गौण हो गये हैं, ऐसे एक जीव के स्वभाव का अनुभव करने पर वे अभूतार्थ हैं, असत्यार्थ हैं।
नय दो प्रकार के हैं - द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक। द्रव्य-पर्यायात्मक वस्तु में जो नय मुख्यरूप से द्रव्य का अनुभव कराये, वह द्रव्यार्थिक नय है और जो नय उसी द्रव्य-पर्यायात्मक वस्तु में मुख्यरूप से पर्याय का अनुभव कराये, वह पर्यायार्थिक नय है।
द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक - ये दोनों नय द्रव्य और पर्याय का पर्याय से, भेद से, क्रम से अनुभव करने पर भूतार्थ हैं, सत्यार्थ हैं और द्रव्य तथा पर्याय दोनों से अनालिंगित शुद्धवस्तुमात्र जीव के चैतन्यमात्र स्वभाव का अनुभव करने पर वे अभूतार्थ हैं, असत्यार्थ हैं।
निक्षेप चार प्रकार के हैं - नामनिक्षेप, स्थापनानिक्षेप, द्रव्यनिक्षेप और भावनिक्षेप । गुण की अपेक्षा बिना वस्तु का नामकरण करना नामनिक्षेप है; 'यह वह है' - इसप्रकार अन्य वस्तु में किसी अन्य वस्तु का प्रतिनिधित्व स्थापित करना स्थापनानिक्षेप है; अतीत और भावी पर्यायों का वर्तमान में आरोप करना द्रव्यनिक्षेप है और वर्तमान पर्यायरूप वस्तु को वर्तमान में कहना भावनिक्षेप है।
ये चारों ही निक्षेप अपने-अपने लक्षणभेद से विलक्षण (भिन्न-भिन्न) अनुभव किये जाने पर भूतार्थ हैं, सत्यार्थ हैं और भिन्न-भिन्न लक्षण से रहित एक अपने चैतन्यलक्षणरूप जीवस्वभाव का अनुभव करने पर ये चारों ही अभूतार्थ हैं, असत्यार्थ हैं।