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________________ सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार ५२९ द्वारा यह ज्ञान पदार्थों के विस्तार के साथ गुंथित होने से उत्पन्न होनेवाली क्रिया से रहित एक ज्ञानक्रियामात्र अनाकुल और दैदीप्यमान निश्चल रहता है। इस कलश में मात्र यही कहा गया है कि ज्ञान ज्ञेयों के साथ गुँथित होने पर भी, ज्ञेयों को जानते रहने पर भी, ज्ञेयों का नहीं हो जाता, ज्ञेयरूप नहीं हो जाता, ज्ञेयों से पृथक् ही रहता है। अब इसी बात को विस्तार से आगामी गाथाओं में कहते हैं, जिनका पद्यानुवाद इसप्रकार है - (हरिगीत ) शास्त्र ज्ञान नहीं है क्योंकि शास्त्र कुछ जाने नहीं। बस इसलिए ही शास्त्र अन्य रुज्ञान अन्य श्रमण कहें।।३९०।। शब्द ज्ञान नहीं है क्योंकि शब्द कछ जाने नहीं। बस इसलिए ही शब्द अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें।।३९१।। रूप ज्ञान नहीं है क्योंकि रूप कुछ जाने नहीं। बस इसलिए ही रूप अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें।।३९२।। वर्ण ज्ञान नहीं है क्योंकि वर्ण कुछ जाने नहीं। बस इसलिए ही वर्ण अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें।।३९३।। गंधो णाणं ण हवदि जम्हा गंधो ण याणदे किंचि। तम्हा अण्णं णाणं अण्णं गंधं जिणा बेंति ॥३९४।। ण रसो दु हवदि णाणं जम्हा दुरसो ण याणदे किंचि। तम्हा अण्णं णाणं रसं च अण्णं जिणा बेंति ।।३९५।। फासो ण हवदि णाणं जम्हा फासो य याणदे किंचि। तम्हा अण्णं णाणं अण्णं फासं जिणा बेंति ।।३९६।। कम्मं णाणं ण हवदि जम्हा कम्मंण याणदे किंचि।। तम्हा अण्णं णाणं अण्णं कम्मं जिणा बेंति ।।३९७।। धम्मो णाणं ण हवदि जम्हा धम्मो ण याणदे किंचि। तम्हा अण्णं णाणं अण्णं धम्मं जिणा बेंति ॥३९८।। णाणमधम्मो ण हवदि जम्हाधम्मो ण याणदे किंचि। तम्हा अण्णं णाणं अण्णमधम्मं जिणा बेंति ॥३९९।। कालो णाणं ण हवदि जम्हा कालो ण याणदे किंचि। तम्हा अण्णं णाणं अण्णं कालं जिणा बेंति ।।४००।।
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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