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का ही संचेतन करता हूँ ।
१०१. मैं सुरभिगंध नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ ।
समयसार
१०२. मैं असुरभिगंध नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ ।
१०३.
मैं शुक्लवर्ण नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ ।
१०४. मैं रक्तवर्ण नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ ।
१०५. मैं पीतवर्ण नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ ।
१०६. मैं हरितवर्ण नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ।
१०७. मैं कृष्णवर्ण नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ ।
नाहं नरकगत्यानुपूर्वीनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । १०८ । नाहं तिर्यग्गत्यानुपूर्वीनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । १०९ । नाहं मनुष्यगत्यानुपूर्वीनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । ११० । नाहं देवगत्यानुपूर्वीनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । १११ ।
नाहं निर्माणनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । ११२ । नाहमगुरुलघुनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । ११३ । नाहमपुघातनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । ११४ । नाहं परघातनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।११५। नाहमातपनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । ११६ । नाहमुद्योतनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । ११७ । नाहमुच्छ्वासनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । ११८ ।
१०८. मैं नरकगत्यानुपूर्वी नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ ।
१०९. मैं तिर्यंचगत्यानुपूर्वी नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ ।
११०. मैं मनुष्यगत्यानुपूर्वी नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ ।
१११. मैं देवगत्यानुपूर्वी नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप