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समयसार
२९. मैं भविष्य में मन-वचन-काय से कर्म नहीं करूंगा। ३०. मैं भविष्य में मन-वचन-काय से कर्म नहीं कराऊँगा। ३१. मैं भविष्य में मन-वचन-काय से अन्य करते हुए कर्म का अनुमोदन नहीं करूँगा। ३२. मैं भविष्य में मन-वचन से कर्म नहीं करूँगा। ३३. मैं भविष्य में मन-वचन से कर्म नहीं कराऊँगा। ३४. मैं भविष्य में मन-वचन से अन्य करते हए कर्म का अनुमोदन नहीं करूँगा। ३५. मैं भविष्य में मन-काय से कर्म नहीं करूँगा। ३६. मैं भविष्य में मन-काय से कर्म नहीं कराऊँगा। ३७. मैं भविष्य में मन-काय से अन्य करते हए कर्म का अनुमोदन नहीं करूँगा। २४. मैं भविष्य में वन-काय-से-कर्म नहीं करूँमा। ३९. मैं भविष्य में वचन-काय से कर्म नहीं कराऊँगा। ४०. मैं भविष्य में वचन-काय से अन्य करते हुए कर्म का अनुमोदन नहीं करूँगा। ४१. मैं भविष्य में मन से कर्म नहीं करूँगा। ४२. मैं भविष्य में मन से कर्म नहीं कराऊँगा।
न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि मनसा चेति ।४३। न करिष्यामि वाचा चेति ।४४। न कारयिष्यामि वाचा चेति ।४५। न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि वाचा चेति ।४६। न करिष्यामि कायेन चेति ।४७। न कारयिष्यामि कायेन चेति ।४८। न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि कायेन चेति ।४९।
( आर्या ) प्रत्याख्याय भविष्यत्कर्म समस्तं निरस्तसंमोहः।
आत्मनि चैतन्यात्मनि निष्कर्मणि नित्यमात्मना वर्ते ।।२२८।। इति प्रत्याख्यानकल्पः समाप्तः।
(उपजाति) समस्तमित्येवमपास्य कर्म त्रैकालिकं शुद्धनयावलंबी।
विलीनमोहो रहितं विकारैश्चिन्मात्रमात्मानमथावलंबे ।।२२९।। ४३. मैं भविष्य में मन से अन्य करते हुए कर्म का अनुमोदन नहीं करूँगा। ४४. मैं भविष्य में वचन से कर्म नहीं करूँगा। ४५. मैं भविष्य में वचन से कर्म नहीं कराऊँगा। ४६. मैं भविष्य में वचन से अन्य करते हुए कर्म का अनुमोदन नहीं करूँगा। ४७. मैं भविष्य में काय से कर्म नहीं करूँगा। ४८. मैं भविष्य में काय से कर्म नहीं कराऊँगा। ४९. मैं भविष्य में काय से अन्य करते हुए कर्म का अनुमोदन नहीं करूँगा। इन ४९ भंगों के उपसंहाररूप में जो कलश लिखा गया है, उसका पद्यानुवाद इसप्रकार है -