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समयसार
वह घट पुरुषाकार तो होता नहीं है; क्योंकि अन्यद्रव्य के स्वभाव से किसी अन्यद्रव्य के परिणाम का उत्पाद देखने में नहीं आता ।
यदि ऐसा हो तो फिर मिट्टी कुम्हार के स्वभाव से उत्पन्न नहीं होती; किन्तु मिट्टी के स्वभाव से ही उत्पन्न होती है यही निश्चित रहा; क्योंकि प्रत्येक द्रव्य के परिणाम का अपने स्वभावरूप से ही उत्पाद देखा जाता है
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ऐसा होने पर यह निश्चित हुआ कि मिट्टी अपने स्वभाव का उल्लंघन नहीं करती; इसलिए मिट्टी ही कुम्हार के स्वभाव को स्पर्श न करती हुई अपने स्वभाव से ही कुंभ (घट) भावरूप से उत्पन्न होती है; कुम्हार कुंभ का उत्पादक है ही नहीं ।
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यह बात तो द्रष्टान्त पर घटित हुई है; अब इसी बात को दाष्टन्ति पर घटित करते हैं। एवं सर्वाण्यपि द्रव्याणि स्वपरिणामपर्यायेणोत्पद्यमानानि किं निमित्तभूतद्रव्यांतर स्वभावेनोत्पद्यंते, किं स्वस्वभावेन ?
यदि निमित्तभूतद्रव्यांतरस्वभावेनोत्पद्यन्ते तदा निमित्तभूतपरद्रव्याकारस्तत्परिणामः स्यात् । न च तथास्ति, द्रव्यांतरस्वभावेन द्रव्यपरिणामोत्पादस्यादर्शनात् । यद्येवं तर्हि न सर्वद्रव्याणि निमित्तभूतपरद्रव्यस्वभावेनोत्पद्यन्ते, किंतु स्वस्वभावेनैव, स्वस्वभावेन द्रव्यपरिणामोत्पादस्य
दर्शनात् ।
एवं च सति सर्वद्रव्याणां स्वस्वभावनतिक्रमान्न निमित्तभूतद्रव्यांतराणि स्वपरिणामस्योत्पादकान्येव; सर्वद्रव्याण्येव निमित्तभूतद्रव्यांतरस्वभावमस्पृशंति स्वस्वभावेन स्वपरिणामभावेनोत्पद्यन्ते । अतो न परद्रव्यं जीवस्य रागादीनामुत्पादकमुत्पश्यामो यस्मै कुप्यामः ।। ३७२ ।।
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यहाँ एक प्रश्न संभव है कि स्वपरिणामरूप पर्याय से उत्पन्न होते हुए सभी द्रव्य निमित्तभूत अन्यद्रव्यों के स्वभाव से उत्पन्न होते हैं या अपने स्वभाव से ?
यदि यह कहा जाये कि निमित्तभूत अन्यद्रव्यों के स्वभाव से सभी द्रव्य उत्पन्न होते हैं तो उनके परिणामों को निमित्तभूत अन्यद्रव्यों के आकार का होना चाहिए; परन्तु ऐसा तो होता नहीं है, द्रव्यों के परिणाम निमित्तभूत अन्य द्रव्यों के आकार के तो होते नहीं हैं; क्योंकि अन्यद्रव्य के स्वभाव से किसी अन्यद्रव्य के परिणाम का उत्पाद देखने में नहीं आता ।
यदि ऐसा है तो फिर सर्वद्रव्य निमित्तभूत अन्यद्रव्यों के स्वभाव से उत्पन्न नहीं होते; परन्तु अपने स्वभाव से ही उत्पन्न होते हैं - यही निश्चित रहा; क्योंकि प्रत्येक द्रव्य के परिणाम का अपने स्वभाव से ही उत्पाद देखा जाता है।
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ऐसा होने पर यह निश्चित हुआ कि सर्वद्रव्य अपने स्वभाव का उल्लंघन नहीं करते; इसलिए सर्वद्रव्य ही निमित्तभूत अन्यद्रव्यों के स्वभाव का स्पर्श न करते हुए अपने स्वभाव से ही अपने परिणाम से पर्यायरूप से उत्पन्न होते हैं; निमित्तभूत अन्यद्रव्य उनके परिणामों के उत्पादक हैं ही नहीं । अत: आचार्यदेव अन्त में कहते हैं कि हम जीव में उत्पन्न होनेवाले रागादिभावों का उत्पादक परद्रव्यों को देखते ही नहीं हैं, मानते ही नहीं हैं, जानते ही नहीं हैं; फिर उन परद्रव्यों पर