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सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार
४७७ द्वारा उत्पन्न होता हुआ; चेतयिता के निमित्त से अपने स्वभाव के परिणाम द्वारा उत्पन्न होते हुए पुद्गलादि परद्रव्यों को अपने स्वभाव से देखता है अथवा श्रद्धा करता है - ऐसा व्यवहार किया जाता है।
अपि च - यथा च सैव सेटिका श्वेतगुणनिर्भरस्वभावा स्वयं कुड्यादिपरद्रव्यस्वभावेनापरिणममाना कुड्यादिपरद्रव्यं चात्मस्वभावेनापरिणमयन्ती कुड्यादिपरद्रव्यनिमित्तकेनात्मनः श्वेतगुणनिर्भरस्वभावस्य परिणामेनोत्पद्यमाना कुड्यादिपरद्रव्यं सेटिकानिमित्तकेनात्मनः स्वभावस्य परिणामेनोत्पद्यमानमात्मनः स्वभावेन श्वेतयतीति व्यवह्रियते, तथा चेतयितापि ज्ञानदर्शनगुणनिर्भरपरापोहनात्मकस्वभावः स्वयं पुद्गलादिपरद्रव्यस्वभावेनापरिणममान: पुद्गलादिपरद्रव्यं चात्मस्वभावेनापरिणमयन् पुद्गलादिपरद्रव्यनिमित्तकेनात्मनो ज्ञानदर्शनगुणनिर्भरपरापोहनात्मकस्वभावस्य परिणामेनोत्पद्यमानः स्वभावेनापोहतीति व्यवह्रियते।
एवमयमात्मनो ज्ञानदर्शनचारित्रपर्यायाणां निश्चयव्यवहारप्रकारः। एवमेवान्येषां सर्वेषामपि पर्यायाणां द्रष्टव्यः ।।३५६-३६५ ।।
जिसप्रकार ज्ञान और दर्शनगुण के संदर्भ में व्यवहार का विवेचन किया, अब उसीप्रकार चारित्रगुण के संदर्भ में भी विवेचन किया जाता है।
जिसप्रकार श्वेतगुण से परिपूर्ण स्वभाववाली यह कलई स्वयं दीवाल आदि परद्रव्यों के स्वभावरूप परिणमित न होती हुई और दीवाल आदि परद्रव्यों को अपने स्वभावरूप परिणमित न करती हुई दीवाल आदि परद्रव्यों के निमित्त से अपने श्वेतगुण से परिपूर्ण स्वभाव के परिणाम के द्वारा उत्पन्न होती हुई यह कलई; कलई के निमित्त से अपने स्वभावपरिणाम द्वारा उत्पन्न होते हुए दीवाल आदि परद्रव्यों को अपने (कलई के) स्वभाव से श्वेत करती है - ऐसा व्यवहार किया जाता है।
इसीप्रकार चारित्रगुण से परिपूर्ण स्वभाववाला चेतयिता भी स्वयं पुद्गलादि परद्रव्यों के स्वभावरूप परिणमित न होता हुआ और पुद्गलादि परद्रव्यों को अपने स्वभावरूप परिणमन न कराता हुआ पुद्गलादि परद्रव्यों के निमित्त से अपने चारित्रगुण से परिपूर्ण स्वभाव के परिणाम द्वारा उत्पन्न होता हुआ; चेतयिता के निमित्त से अपने स्वभाव के परिणाम द्वारा उत्पन्न होते हुए पुद्गलादि परद्रव्यों को अपने स्वभाव से अपोहता (त्याग करता) है - ऐसा व्यवहार किया जाता है।"
उक्त सम्पर्ण कथन का सार यह है कि जिसप्रकार का संबंध दीवाल पर पती हई कलई का दीवार के साथ है; उसीप्रकार का संबंध ज्ञायक भगवान आत्मा का परज्ञेयों के साथ है, दर्शक भगवान आत्मा का परदृश्यों के साथ है और अपोहक भगवान आत्मा का अपोह्य परपदार्थों के साथ है।
तात्पर्य यह है कि व्यवहार से भले ही कलई दीवाल को सफेद करनेवाली कही जाती हो, दीवाल की कही जाती हो; तथापि वस्तुस्थिति यह है कि कलई और दीवाल अत्यन्त भिन्न पदार्थ