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________________ ४७६ समयसार परद्रव्यों को अपने स्वभावरूप परिणमित न करती हुई दीवाल आदि परद्रव्यों के निमित्त से अपने श्वेतगुण से परिपूर्ण स्वभाव के परिणाम के द्वारा उत्पन्न होती हुई यह कलई; कलई के निमित्त से अपने स्वभावपरिणाम द्वारा उत्पन्न होते हुए दीवाल आदि परद्रव्यों को अपने (कलई के) स्वभाव से श्वेत करती है - ऐसा व्यवहार किया जाता है। ज्ञानगुणनिर्भरस्वभावः स्वयं पुदगलादिपरद्रव्यस्वभावेनापरिणमनमानः पुदगलादिपरद्रव्यं चात्मस्वभावेनापरिणमयन् पुद्गलादिपरद्रव्यनिमित्तकेनात्मनो ज्ञानगुणनिर्भरस्वभावस्य परिणामेनोत्पद्यमानमात्मन: पुद्गलादिपरद्रव्यं चेतयितुनिमित्तकेनात्मन:स्वभावस्य परिणामेनोत्पद्यमानमात्मनः स्वभावेन जानातीति व्यवह्रियते। किंच - यथा च सैव सेटिका श्वेतगुणनिर्भरस्वभावा स्वयं कुड्यादिपरद्रव्यस्वभावेनापरिणममाना कुड्यादिपरद्रव्यं चात्मस्वभावेनापरिणमयन्ती कुड्यादिपरद्रव्यनिमित्तकेनात्मनः श्वेतगुणनिर्भरस्वभावस्य परिणामेनोत्पद्यमाना कुड्यादिपरद्रव्यं सेटिकानिमित्तकेनात्मनःस्वभावस्य परिणामेनोत्पद्यमानमात्मनः स्वभावेन श्वेतयतीति व्यवह्रियते, तथा चेतयितापि दर्शनगुणनिर्भरस्वभावः स्वयं पुद्गलादिपरव्यस्वभावेनापरिणममान: पुद्गलादिपरद्रव्यं चात्मस्वभावेनापरिणमयन् पुद्गलादिपरद्रव्यनिमित्तकेनात्मनो दर्शनगुणनिर्भरस्वभावस्य परिणामेनोत्पद्यमान: पुद्गलादिपरद्रव्यं चेतयितृनिमित्तकेनात्मनः स्वभावस्य परिणामेनोत्पद्यमानमात्मनः स्वभावेन पश्यतीति व्यवह्रियते। इसीप्रकार ज्ञानगुण से परिपूर्ण स्वभाववाला चेतयिता भी स्वयं पुद्गलादि परद्रव्यों के स्वभावरूप परिणमित न होता हुआ और पुद्गलादि परद्रव्यों को अपने स्वभावरूप परिणमन न कराता हुआ पुद्गलादि परद्रव्यों के निमित्त से अपने ज्ञानगुण से परिपूर्ण स्वभाव के परिणाम द्वारा उत्पन्न होता हुआ; चेतयिता के निमित्त से अपने स्वभाव के परिणाम द्वारा उत्पन्न होते हुए पुद्गलादि परद्रव्यों को अपने स्वभाव से जानता है - ऐसा व्यवहार किया जाता है। जिसप्रकार ज्ञानगुण के संदर्भ में व्यवहार का विवेचन किया, अब उसीप्रकार दर्शनगुण के संदर्भ में भी विवेचन किया जाता है। जिसप्रकार श्वेतगुण से परिपूर्ण स्वभाववाली यह कलई स्वयं दीवाल आदि परद्रव्यों के स्वभावरूप परिणमित न होती हुई और दीवाल आदि परद्रव्यों को अपने स्वभावरूप परिणमित न करती हुई दीवाल आदि परद्रव्यों के निमित्त से अपने श्वेतगुण से परिपूर्ण स्वभाव के परिणाम के द्वारा उत्पन्न होती हुई यह कलई; कलई के निमित्त से अपने स्वभावपरिणाम द्वारा उत्पन्न होते हुए दीवाल आदि परद्रव्यों को अपने (कलई के) स्वभाव से श्वेत करती है - ऐसा व्यवहार किया जाता है। ___ इसीप्रकार दर्शनगुण से परिपूर्ण स्वभाववाला चेतयिता भी स्वयं पुद्गलादि परद्रव्यों के स्वभावरूप परिणमित न होता हुआ और पुद्गलादि परद्रव्यों को अपने स्वभावरूप परिणमन न कराता हआ पुद्गलादि परद्रव्यों के निमित्त से अपने दर्शनगण से परिपूर्ण स्वभाव के परिणाम
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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