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________________ ४७३ सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार और पुद्गलादि परद्रव्य व्यवहार से उसके दृश्य हैं। अब दर्शक आत्मा पुद्गलादि दृश्यों का है या नहीं - इस बात का तात्त्विक विचार किया जाता है। यदि चेतयिता पुद्गलादेर्भवति तदा यस्य यद्भवति तत्तदेव भवति यथात्मनो ज्ञानं भवदात्मैव भवतीति तत्त्वसंबंधे जीवति चेतयिता पुद्गलादेर्भवन् पुद्गलादिरेव भवेत्; एवं सति चेतयितुः स्वद्रव्योच्छेदः । न च द्रव्यांतरसंक्रमस्य पूर्वमेव प्रतिषिद्धात्वाद्रव्यस्यास्त्युच्छेदः । ततो न भवति चेतयिता पुद्गलादेः। यदि न भवति चेतयिता पुद्गलादेस्तर्हि कस्य चेतयिता भवति? चेतयितुरेव चेतयिता भवति । ननु कतरोऽन्यश्चेतयिता चेतयितुर्यस्य चेतयिता भवति? न खल्वन्यश्चेतयिता चेतयितुः, किन्तु स्वस्वाम्यंशावेवान्यौ । किमत्र साध्यं स्वस्वाम्यंशव्यवहारेण? न किमपि । तर्हि न कस्यापि दर्शकः, दर्शको दर्शक एवेति निश्चयः। अपि च सेटिकात्र तावच्छ्वेतगुणनिर्भरस्वभावं द्रव्यम् । तस्य तु व्यवहारेण श्वैत्यं कुड्यादिपरद्रव्यम् । अथात्र कुड्यादेः परद्रव्यस्य श्वैत्यस्य श्वेतयित्री सेटिका किं भवति किं न भवतीति तदुभयतत्त्वसंबंधो मीमांस्यते - यदि चेतयिता आत्मा पुदगलादि दृश्यों का हो तो क्या हो - सर्वप्रथम इसका विचार करते हैं। जिसका जो होता है, वह वही होता है। जैसे दर्शन आत्मा का होने से दर्शन आत्मा ही है - ऐसा तात्त्विक संबंध जीवित होने से चेतयिता आत्मा यदि पुद्गलादि का हो तो आत्मा को पुद्गलादि ही होना चाहिए और ऐसा होने पर आत्मा के स्वद्रव्य का उच्छेद हो जायेगा, किन्तु द्रव्य का उच्छेद तो होता नहीं; क्योंकि एक द्रव्य का अन्य द्रव्यरूप होने का निषेध तो पहले ही किया जा चुका है। इसप्रकार यह सिद्ध हुआ कि चेतयिता आत्मा पुद्गलादि का नहीं है। अब आगे विचार करते हैं कि चेतयिता आत्मा पुद्गलादि का नहीं है तो किसका है ? यदि यह कहा जाये कि चेतयिता का ही चेतयिता है तो फिर प्रश्न उठता है कि चेतयिता से भिन्न ऐसा दूसरा कौन-सा चेतयिता है कि जिसका यह चेतयिता है ? चेतयिता से भिन्न दूसरा कोई चेतयिता नहीं है; किन्तु वे दो स्व-स्वामीरूप अंश ही हैं - यदि यह कहा जाये तो फिर प्रश्न उठता है कि यहाँ स्व-स्वामीरूप अंशों के व्यवहार से क्या साध्य है? तात्पर्य यह है कि कुछ भी साध्य नहीं है। जिसप्रकार दर्शक किसी का नहीं है; दर्शक तो दर्शक ही है - यह निश्चय है। इसप्रकार यह बताया गया है कि 'आत्मा परद्रव्य को देखता है अथवा श्रद्धा करता है' - यह व्यवहार कथन है और 'आत्मा अपने को देखता है और श्रद्धा करता है' - इस कथन में भी स्व-स्वामी अंशरूप व्यवहार है; निश्चय तो यह है कि दर्शक दर्शक ही है। जिसप्रकार ज्ञायक और दर्शक पर घटित किया गया, अब उसीप्रकार अपोहक पर भी घटित किया जा रहा है। सेटिका अर्थात् कलई श्वेत (सफेद) पदार्थ है और दीवार आदि श्वेत्य (सफेद किये जाने योग्य - पोते जाने योग्य) पदार्थ है। अब श्वेत करनेवाली कलई श्वेत किये जाने योग्य दीवाल
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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